Wednesday, 12 December 2012

यात्रा



सन 1974 मिनी पी. एस. सी. एक्जाम
प्रशिक्षार्थी शिक्षक के पद पर चयन
100 रुपये मासिक वेतन पर
21.07.1975-76 को पेंड्रा बी. टी. आई.

1976 में दैनिक मजदूरी थी 6.42 रुपये

सन 1976 77 दंतेवाडा समेली न 03 में पदस्थ
दंतेवाडा >नकुलनार >पालनार>समेली
पैदल यात्रा लगभग 63 कि मी एक दिन में
और वापसी 13 कि मी पालनार जंगलों से

दंतेवाडा हा से स्कूल में सहायक शिक्षक 1980 तक
1976 से 1977 तक 150 रुपये छात्रवृत्ति
प्राचार्य श्री लक्ष्मीकांत ज्योतिषी जी का मार्गदर्शन
1980 में बिलासपुर स्थानान्तरण

उतार चढ़ाव के बीच 1999 तक सेवाएँ
उ. व. शि. फिर प्रधान पाठक बन आज भी सेवारत
पेड़ों, बच्चों, और स्वार्थपरता की हद तक
खुद से खुदगर्ज की तरह प्रेम

नाम नहीं लूँगा मेरे गॉड ब्रदर का
जिनका मेरे जीवन में हर जगह प्रभाव
ब्लॉग, प्रशिक्षण, लेखन, जीवन शैली में
हर मोड़, हर राह पर जिसका मार्गदर्शन

अब मूल सन्देश

मुझे नौकरी पर किसी ने नहीं बुलाया था
मैंने अपनी गरज और शासन के शर्तों में काम किया
मैंने काम छोड़ा भी पकड़ा भी
आज शर्तों को ताक पर रखकर रोना क्यों?

बिना परेशानी के नौकरी छोड़ ज़रूरत मंद को दें
पैसे की खातिर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़?
कोई तर्क या समझाइश नहीं स्वयं निर्णय लें
यदि आपका समय अनमोल तो बच्चों का जीवन?

सेवा शर्तों की कोई बाध्यता या बंधन?
नई अच्छी नौकरी मिलने पर क्या करेंगे?
किसके कहने पर सेवाएँ, नई राह तलाशें?
योग्य, समर्पित, निष्ठावान को मौका दें?

देश की कोई भी नौकरी राष्ट्र की किस नीति के तहत?

शिक्षा के गिरते मूल्य के लिए कौन जिम्मेदार?
निष्ठा, सेवा, समर्पण, पर प्रश्न चिन्ह क्यों?
100 रूपया चंदा देकर 10 दिन की मौज मस्ती?
एक बार पूरे दम से हक की लड़ाई क्यों नहीं?

मांग हक है, या भीख जो चार आने से टूट जाये?
ऐसे ही अनेक सवाल जवाब सर दर्द की तरह
शिक्षा और शिक्षकों के ही साथ खिलवाड़ क्यों?
हम सब अपने अपने उल्लू साधने में लगे हैं?

सर्वमान्य, सर्वग्राह्य, सर्वसुलभ हल क्यों नहीं?
राष्ट्र निर्माता, राष्ट्र के भविष्य से सौतेलापन ?

चलो ज्ञान यग्य में पूर्णाहुति देकर राष्ट्र के निर्माण में
आदरणीय परशुराम, द्रोण, विश्वामित्र का वरदहस्त प्राप्त करें

12.12.2012
ऐसा न सोचें मेरा जीवन इतना सरल सहज है .
पूरा जीवन खो गया यह सब लिखने में
आज तक अपने लिए कुछ भी नहीं जुटा पाया,
लेकिन कभी अफसोस नहीं हुआ .
ईश्वर ने जो कुछ भी दिया प्रभु प्रसाद , आभारी

Saturday, 3 November 2012

प्रेम



एक बार नारद जी शुश्रुत जी के पास गए
शुश्रुत जी रुग्ण लोगों को औषधि दे रहे थे
नारद जी ने कहा वैद्य जी मेरे पास एक सूची है
सूची में वो हैं जो ईश्वर को याद करते हैं

आप भी अपना नाम सूची में देख लें
नारद जी के आग्रह पर खंगाल डाली सूची
आदि से अंत तक हर सफा भरा था भक्तों से
शुश्रुत ने नहीं पाया तो अपना नाम कहीं

परोपकार में पेड़ फल दें नदियाँ बहें निरंतर क्यों
गाय दूध देती हैं शरीर भी परोपकार में
परोपकार में ही बीतता गया हर पल यूँ ही
एक बार फिर पहुच गए नारद जी शुश्रुत के पास

जैसे ही नारद जी पहुंचे शुश्रुत जी के पास सूची ले
इस बार उन्होंने कहा प्रभु क्षमा करें,औषधि-वितरण में
नारद जी ने मध्य में ही कहा आदरणीय इस बार
नई सूची का अवलोकन करें थोड़ा धीरज धरें

क्यों नाहक आप समय और औषधि को नष्ट करते हैं
हरने दें पीड़ा आप व्यर्थ न गवाएं अमूल्य समय
हर पन्ना शुरू से अंत तक भरा था भक्तों से
बस नहीं मिल पाया पहले पन्ने के बाद अंत तक

खिन्न मन से शुश्रुत जी ने नारद जी को लौटा दी सूची
इस बार इनका आग्रह रहा भविष्य में न करें ऐसा
बड़ी पीड़ा होती है लगता है पूरा जीवन व्यर्थ चला गया
बस मगन हूँ अपने धुन में बांटते-खोजते औषधि

शुश्रुत जी आपने एक सामने का पन्ना छोड़ दिया देखना
नारद जी के अनुरोध पर देखा और आश्चर्य से भर गये
पहले पन्ने पर पहला नाम वैद्य शुश्रुत जी अंकित देख
न हों चकित, न संशय, न शोक, न आकुलता

ये क्यों?

पहली सूची थी भक्तों की जो याद करते हैं प्रभु को
दूसरी सूची रही भगवान की जो भक्तों को याद करते हैं
*महत्वपूर्ण यह नहीं कि  आप किसे याद करते हैं*
**महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपको कौन याद कर जाता है**

***ये रचना उसे समर्पित जो मुझे याद करता/करती है ***

****पिता श्री जीत सिंह से सुनी कहानी का लेखन****
13अगस्त 1994 रात्रि 8.45 दिन शनिवार
पिताजी का अवसान 14 अगस्त 1.28 दोपहर दिन रविवार

चित्र गूगल से साभार 

Tuesday, 23 October 2012

ज़रा देखूं



यूँ जो टूटा वो तन्हा होता ही है
जो तोड़ा वो तन्हा हो जाता है


समझने और समझाने में सपने टूट जाते हैं
बैठो संग, चलें कुछ दूर, शायद पास आ जायें


झुकाकर आँख दिल में झांकना तेरी अदा है
ज़रा देखूं ला मेरा नाम पंखुड़ी में लिखा है


दफ़न यादों में सब कुछ देख कोई शिकवा गिला है
सहेजा मान मर्यादा फिर बिखरा सिमटा मिला है

24.10. 2012
चित्र गूगल से साभार  

Friday, 12 October 2012

दामन


इश्क खुदा है?
इश्क ही रब है?
प्रेम ईश्वर है?
तब प्रेम में कष्ट क्यों?

प्रेम अंधा होता है?
या मूंद लेता है आंखे?
प्रेम करनेवाला निर्बल?
प्रेम ह्रदय में बसता है?

बड़ी खूबसूरती से
तुमने दामन छुड़ाया
कर लिया किनारा
हाथ सरकाकर

तुम्हे पता है
हमें खबर हुई?
बस अलग हो गये
अगले चौराहे से

बिन कहे बिन सुने
उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर
एक ऐसी यात्रा में
जिसका ओर न छोर

15.04.2011

Monday, 8 October 2012

जिद



मुस्कुराने के लिये, गर चाँद ही काफी रहे
तो विरह में प्रेयसी, क्यूँ कहीं व्याकुल फिरे


संजोकर खुबसूरत याद में, हर सुबह शाम ज़िक्र तेरा
थामकर हाथ हर लम्हा, जिया जिसने हर ख्वाब तेरा


इल्तजा जब बन जाये, इबारत दिल पर
खुदा को भी एक दिन, रास आ जाना है


आपका जिद आपका हक है
गर मचलेगा मना लेंगे हम

08.10.2012
चित्र गूगल से साभार   

Saturday, 29 September 2012

श्रद्धांजलि


काले गोरे का भेद बताकर करे विदेश अपमान
कौन यहाँ पर राज किया है भारत इसका नाम
अमर रहेगा नाम जगत में बापू तेरा काम
बापू तेरा नाम जग में अमर रहेगा काम

प्रेम भाव से दीन दुखी के विपदा को निपटाया
सत्य, अहिंसा,और शान्ति को तूने अस्त्र बनाया
इस दुनियां में प्रेम जताकर किया नारी का मान

खादी धोती और कुरते ने अपना असर दिखाया
अंगरेजों की ऊंची गरदन अपने आप झुकाया
व्यर्थ हुए सब अंगरेजों के जोर जुलुम के काम

याद में तेरी आज बहाती आंसू ये सूनी गलियाँ
फूलवारी लगा गया पर देखी न खिलती कलियाँ
इस दुनियां से राम राम कह चला छोड़ सब काम

गलती से हमें सदा बचाना होगी हमसे भूल
चरणों में तेरी आज समर्पित श्रद्धा के कुछ फूल
सत्कर्मों से सीख हमें दे करने चले विश्राम

29.09. 1975
बुनियादी प्रशिक्षण संस्था पेंड्रा में
आयोजित गाँधी जयंती पर प्रस्तुत
चित्र गूगल से साभार

Saturday, 22 September 2012

तन्हा

हवा का रुख बदलता है, बदल पाई ऋतुएं भी?
बदल पाये तेरी यादें, ऐसी वो रुत कहाँ आई

सपनों को उगायेंगे, हम क्यूं ज़िन्दगी से हारें
हर फ़र्ज निभायेंगे, हर पल ज़िन्दगी को वारें

लाख मुश्किलें खड़ी हों, हम ये हौसला रखेंगे
तन्हा कहां तनहाइयाँ, लिखा तकदीर बदलेंगे


23.09.2012

Wednesday, 12 September 2012

ये ज़िन्दगी


परछाइयों से ज़िन्दगी दबती रहीं कहीं ?
परछाइयों से ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी रहीं?

आग पर चलकर यहाँ दरिया सुखाने मैं चला
रेत के घरौंदे अगोरे सागर किनारे वक़्त बन ?

दर्द-रंज-ख़ुशी अश्कों में उभर आता है
वक़्त कभी हर जख्म को भर पाता है?

लाख कर लो यकीं और सोच लो दिल में
जो गुज़र गया वो कभी फिर लौट पाता है?

12.सितम्बर 2012

Friday, 31 August 2012

ईमानदारी


तुम्हारा नाम क्या है ?
जी अमित कुमार
किस कक्षा में पढ़ते हो ?
जी सर सातवी कक्षा में
एक कागज पर लिखा 299 रूपया
500 रूपया दिया गया बालक को
नंबर 9827883541 में टॉप अप डलवाना

अमित थोड़ी देर में वापस लौटा
201 रूपया बकाया लेकर
वर्ष 2012 में 1 रूपया की कीमत ?
शून्य या अनमोल ?
जिसने बनाना चाहा बना डाला

अमित ने मुझे 201 वापस किये
लौटने लगा, मैंने आवाज दी
अमित अपनी ईमानदारी लेते जाओ बेटा
बालक आश्चर्य से मेरी और देखने लगा
मैंने कहा ये भले ही एक रूपया का सिक्का है
किन्तु यह तुम्हारे ईमानदारी का प्रतिक है

बेटा अमित अपनी ईमानदारी
सदा अपने साथ रखना
मैंने उसे 1 रूपया का सिक्का दिया
उसने बड़ी श्रद्धा से उसे स्वीकार किया
उस बच्चे में वर्ष 2012 में ही
उसका उज्जवल भविष्य नज़र आया

आज भी ऐसे लोग हैं
जिन पर गर्व किया जा सकता है
हाँ ये बात अलग है कि
उनसे हमारी मुलाकात किस मोड़ पर हुई

रमाकांत सिंह
30.08.2012
ये पोस्ट अमित जैसे विद्यार्थी को समर्पित
जिसके कारण शिक्षक  अपना सम्मान
सुरक्षित पाते हैं , मैं तो इनका कायल हूँ .

Saturday, 18 August 2012

हकीकत


ख्वाब तेरे हों या मेरे ये सदा होते ही हैं पुरे
बस इसे अंजाम तक हो हौसला ले जाने का


हमने सुना है प्यार में खरा रोकड़ा  ही चलता है
भला बतलायें प्यार भी कभी उधार में मिलता है?


अचानक अनायास  जुड़ जाते हैं हादसे हमसे
करें प्रेम की बारिस बादल आसमां पे छायेंगे

रहेगा आँगन ये हरा भरा हर दिन
बादल गरजेंगे नहीं बरसना होगा



दिल से जब दर्द का यूँ गुबार छंट जाता है
खुद ब खुद अपनों पे प्यार छलक जाता है



याद और चाहतें बनाये रखिये ये ख्वाब हकीकत में बदल जाते हैं
आरजू पाक रखें इन्सां अल्लाह रंग दिल के  पन्नों पे उतर आते हैं


रंज ओ गम के हालात में कौन कहाँ दिखता है ?
दर्द दिल के बयां करने को शब्द कहाँ मिलता है ?

19.08. 2012
चित्र गूगल से साभार  

Wednesday, 15 August 2012

बैरागी



सुलगती आहें उभर आई है बिंदी बनकर
न जाने ये मौन क्या गुल खिलायेगा अब ?


तुमने आज सहकर देख लिया, अब मेरी बारी है ?
तेरी आँखों को मैंने पढ़ लिया, अब तेरी बारी है ?


भीगी बारिस में एक परी, किसका रस्ता यूँ ताक रही ?
कहती बूंदें ये बरस बरस, तू व्यर्थ ही रस्ता ताक रही ?


अनुरागी बैरागी मांगे, प्रभु पद में अनुराग
बैरागी अनुरागी बन, जग से कैसे वितराग


बैरागी अनुरागी फिर, कैसे जग से अनुराग ?
वितरागी अनुरागी फिर, कैसे जग से बैराग ?


15.08.2012

Saturday, 11 August 2012

उपहार


मुस्कुराकर आज यूँ, न्यौता दिया है कल को
लगता है कल बाँध लेंगी, मुट्ठियों में समय को


चाह में कुछ खोजने के, खुद कहाँ मैं खो गया
हैवानों की बस्ती में हर, रास्ता कुछ नया नया


तन भीगा मन भीगा, भीगा सारा संसार
इन्द्रदेव भी बरसे हम पर, बारिस का उपहार


रिश्ते होंगे अपने तो, रास्ते बन जायेंगे
रास्ते अपने हों तो, रिश्ते जुड़ जायेंगे 


चित्र गूगल से साभार 
10.08.2012  

Monday, 6 August 2012

नजरिया


यात्रा में पुत्री ने कहा
पिताजी
हां बिटिया
ऐयर होस्टेस हमें देखकर
क्यों मुस्कुरा रही थी?
ऐसा बिटिया

टेक्सी वाले ने क्यों पूछा
साब कैसे होटल में ले चलूं?
पापा
वेटर हमें तिरछी नजरों से
क्यों देख रहा था?

बाबूजी
दवार्इ दुकानदार ने बिना पूछे
क्यों कहा किस कंपनी का दूं?
साब लेटेस्ट आया है
दूं क्या साब?

पिता ने पुत्री से कहा
कौन जानता है हमें यहां
तुम्हारे और मेरे अतिरिक्त
हम पिता.पुत्री हैं

मुझे ऐसा प्रतीत होता है
आज सभी रिश्तों को
घुन सी लग गर्इ है
चढ़ा दिया है सबने इसे
एक ही तराजू के पलड़े पर

शायद लोगों का
नजरिया बदल गया
या हमारे चलने का ढ़ग
कहीं ऐसा तो नहीं
बदल गया चलन

06.08.2012
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, 1 August 2012

इबादत



मुकद्दर की लकीरों को बदलना सीख ले राही
देखना खुद ही एक दिन उगेंगे पंख सोने के

है काम कायर का झुकाना सिर उठाकर फिर
इबादत में उठाया हाथ आसमां थाम लेता है

प्रस्फुटित हर भाव मन में वेद लिखता है
मन रमे जब प्रेम में भगवान मिलता है

आस में आँखें टिकी हैं बंद लब कुछ बोलते
प्रेम है या बेबसी हर राज दिल का खोलते

चित्र गूगल से साभार 
01.08.2012

Saturday, 21 July 2012

मोक्षपथ

Creation of 13th cent. poet Sant Gyandev

Another Creation of 13th cent. poet Sant Gyandev

Table with play and fun


Thursday, 12 July 2012

बंध

नाचे कौन नचाये कौन, ये  मालिक जाने
हम तो तेरे पैरों के, थिरकन पे थिरक बैठे ..

ये अक्सर होता है , जो बनाता है वो भोगता ही नहीं .
आइना दिखाता है हमें , वो कभी देखता ही नहीं ..

खुल जाये जो बंध , वो गांठ होती है ?
न टूटे न खुले , वो तेरा मेरा रिश्ता ..

Sunday, 1 July 2012

दायरा

ज़रा ठहर तेरे चेहरे तेरे नज़र से नज़र हटाने दे
फिर तेरे आँखों के फ़साने की बात पढ़ता हूँ ..

क्यूं  जले मन दीप जैसा रात के एकांत में
जागती आँखें निहारें पथ किसी के प्यार के ..

दायरा तेरा मेरा क्यूँ मेरा तेरा न बन सका
चाँद की तस्वीर तकते उठते गिरते लहर पर ..

चित्र गूगल से साभार 
01.07.2012
समर्पित स्वर्ग से उतरी अप्सरा को   

Saturday, 16 June 2012

ख्वाब

आसरा आपका लेकर चले हैं रहगुज़र पे
धुप और छांव की परवाह किसे

वक़्त थम जाएगा तेरे जानिब
आसरा कौन किसका पता पूछ लेंगे

ख्वाब में प्यार का इज़हार कर जाते हैं
संग दिल आपके ही ख्वाब नज़र आते हैं

क्या कहें ख्वाब में अल्लाह उफ़
आप ही आप बस आप नज़र आते हैं

Wednesday, 4 April 2012

अर्पण



राही नाव चलाये
माझी जावे पार
भक्त अर्पन के लिये
प्रतिमा लाये हार


पानी आग लगाये
ज्योत बुझाये प्यास
गंगा प्यासे से मांगे
गंगाजल की धार


दुश्मन प्रीत बढ़ाये
मीत करे दिल चाक
जीवन मृत्यु से मांगे
पल दो पल का प्यार

25/03/1978
परम मित्र रमाकांत झा जी को समर्पित
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, 21 March 2012

गूंज



अब एक मौन है

प्रेम की स्वीकृति

हमारे बीच

एक गूंज

की तरह



जो सिर्फ महसूस

होती है

और ध्वनियां

एक दूसरे को काटती हैं


रमाकांत सिंह 18/03/2012
तथागत ब्लाग के सृजन कर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह को समर्पित
चित्र गूगल से साभार

Sunday, 26 February 2012

जिंदगी


मैं तुम्हारी परछाई हूं
अंधेरे में भी तेरे साथ हूं,
तू जुदा मुझसे कहा?
मैं जुदा तुमसे कहां?

रमाकांत सिंह 27/02/2012
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, 7 February 2012

रिश्‍ते ही रिसते

मैं रिश्‍तों को जीता हूं
मैं रिश्‍तों में जीता हूं
मैं रिसतों को जीता हूं
मैं रिसतों में जीता हूं

मैं रिश्तों को जीती हूँ
मैं रिश्तों में जीती हूँ
मैं रिसतों को जीती हूँ
मैं रिसतों में जीती हूँ


चित्र गूगल से साभार