Friday, 12 October 2012

दामन


इश्क खुदा है?
इश्क ही रब है?
प्रेम ईश्वर है?
तब प्रेम में कष्ट क्यों?

प्रेम अंधा होता है?
या मूंद लेता है आंखे?
प्रेम करनेवाला निर्बल?
प्रेम ह्रदय में बसता है?

बड़ी खूबसूरती से
तुमने दामन छुड़ाया
कर लिया किनारा
हाथ सरकाकर

तुम्हे पता है
हमें खबर हुई?
बस अलग हो गये
अगले चौराहे से

बिन कहे बिन सुने
उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर
एक ऐसी यात्रा में
जिसका ओर न छोर

15.04.2011

5 comments:

  1. कोई नहीं समझ सका इसे ...
    आभार रमाकांत जी !

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  2. सोचने के लिए प्रेरक प्रश्न... शुभकामनाएँ.

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  3. सुन्दर रचना |

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  4. एक ऐसी यात्रा में
    जिसका ओर न छोर!

    मर्मस्पर्शी!

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