सन 1974 मिनी पी. एस. सी. एक्जाम
प्रशिक्षार्थी शिक्षक के पद पर चयन
100 रुपये मासिक वेतन पर
21.07.1975-76 को पेंड्रा बी. टी. आई.
1976 में दैनिक मजदूरी थी 6.42 रुपये
सन 1976 77 दंतेवाडा समेली न 03 में पदस्थ
दंतेवाडा >नकुलनार >पालनार>समेली
पैदल यात्रा लगभग 63 कि मी एक दिन में
और वापसी 13 कि मी पालनार जंगलों से
दंतेवाडा हा से स्कूल में सहायक शिक्षक 1980 तक
1976 से 1977 तक 150 रुपये छात्रवृत्ति
प्राचार्य श्री लक्ष्मीकांत ज्योतिषी जी का मार्गदर्शन
1980 में बिलासपुर स्थानान्तरण
उतार चढ़ाव के बीच 1999 तक सेवाएँ
उ. व. शि. फिर प्रधान पाठक बन आज भी सेवारत
पेड़ों, बच्चों, और स्वार्थपरता की हद तक
खुद से खुदगर्ज की तरह प्रेम
नाम नहीं लूँगा मेरे गॉड ब्रदर का
जिनका मेरे जीवन में हर जगह प्रभाव
ब्लॉग, प्रशिक्षण, लेखन, जीवन शैली में
हर मोड़, हर राह पर जिसका मार्गदर्शन
अब मूल सन्देश
मुझे नौकरी पर किसी ने नहीं बुलाया था
मैंने अपनी गरज और शासन के शर्तों में काम किया
मैंने काम छोड़ा भी पकड़ा भी
आज शर्तों को ताक पर रखकर रोना क्यों?
बिना परेशानी के नौकरी छोड़ ज़रूरत मंद को दें
पैसे की खातिर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़?
कोई तर्क या समझाइश नहीं स्वयं निर्णय लें
यदि आपका समय अनमोल तो बच्चों का जीवन?
सेवा शर्तों की कोई बाध्यता या बंधन?
नई अच्छी नौकरी मिलने पर क्या करेंगे?
किसके कहने पर सेवाएँ, नई राह तलाशें?
योग्य, समर्पित, निष्ठावान को मौका दें?
देश की कोई भी नौकरी राष्ट्र की किस नीति के तहत?
शिक्षा के गिरते मूल्य के लिए कौन जिम्मेदार?
निष्ठा, सेवा, समर्पण, पर प्रश्न चिन्ह क्यों?
100 रूपया चंदा देकर 10 दिन की मौज मस्ती?
एक बार पूरे दम से हक की लड़ाई क्यों नहीं?
मांग हक है, या भीख जो चार आने से टूट जाये?
ऐसे ही अनेक सवाल जवाब सर दर्द की तरह
शिक्षा और शिक्षकों के ही साथ खिलवाड़ क्यों?
हम सब अपने अपने उल्लू साधने में लगे हैं?
सर्वमान्य, सर्वग्राह्य, सर्वसुलभ हल क्यों नहीं?
राष्ट्र निर्माता, राष्ट्र के भविष्य से सौतेलापन ?
चलो ज्ञान यग्य में पूर्णाहुति देकर राष्ट्र के निर्माण में
आदरणीय परशुराम, द्रोण, विश्वामित्र का वरदहस्त प्राप्त करें
12.12.2012
ऐसा न सोचें मेरा जीवन इतना सरल सहज है .
पूरा जीवन खो गया यह सब लिखने में
आज तक अपने लिए कुछ भी नहीं जुटा पाया,
लेकिन कभी अफसोस नहीं हुआ .
ईश्वर ने जो कुछ भी दिया प्रभु प्रसाद , आभारी
ऐसे जीवन जिसमें शांति और संतुष्टि हो जीने और जीते रहने के लिए शुभकामनाएं।
ReplyDelete@अपने लिए कुछ भी नहीं जुटा पाया,लेकिन कभी अफसोस नहीं हुआ !
ReplyDeleteजीवन भर तो रहे अकेले
कहीं हथेली, ना फैलाई !
गहरे अन्धकार के रहते ,
माँगा कभी दिया,न बाती
कभी न रोये,मंदिर जाकर,सदा मस्त रहते थे गीत
कहीं किसी ने,दुखी न देखा,जीवन भर मुस्काये गीत
ऐसा न सोचें मेरा जीवन इतना सरल सहज है .
ReplyDeleteपूरा जीवन खो गया यह सब लिखने में
आज तक अपने लिए कुछ भी नहीं जुटा पाया,
लेकिन कभी अफसोस नहीं हुआ .
ईश्वर ने जो कुछ भी दिया प्रभु प्रसाद , आभारी
मन की शांति और ह्रदय की संतुष्टि अनमोल है यह मिल गया तो फिर कसीस पारितोषिक की आवश्यकता नहीं.
हदय की शांति के लिए जो कुछ भी प्राप्त होता है, असीम सुख देता है। मेरे पोस्ट पर आकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteअरे! :-(
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति निश्चय ही अत्यधिक प्रभावशाली और ह्रदय स्पर्शी लगी ....इसके लिए सादर आभार ......फुरसत के पलों में निगाहों को इधर भी करें शायद पसंद आ जाये
ReplyDeleteनववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?
यथार्थपरक संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteआत्मसंतुष्टी से बड़ा कुछ नहीं.
ReplyDelete
ReplyDelete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
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ऐसा न सोचें मेरा जीवन इतना सरल सहज है .
पूरा जीवन खो गया यह सब लिखने में
आज तक अपने लिए कुछ भी नहीं जुटा पाया,
लेकिन कभी अफसोस नहीं हुआ .
ईश्वर ने जो कुछ भी दिया प्रभु प्रसाद , आभारी
मन अनायास उदास हो गया है ... ... ...
आदरणीय भाईजी रमाकांत सिंह जी
सादर प्रणाम !
आत्मकथ्य-सी लगने वाली आपकी ये पंक्तियां मात्र आपकी ही नहीं हैं ...
मेरे स्वर्गीय बाबूजी द्वारा कई अवसरों पर अपने संघर्ष के दिनों की याद में कही गई बहुत बातें याद हो आईं...
अधिक कहते तो नहीं बन रहा , फिर भी अपने एक गीत की दो पंक्तियां आपको सौंपते हुए कहूंगा-
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
स्याह कलंकित रैन से अगला चरण सुरम्य सवेरा है !
मन हार न जाना रे !
पूरा गीत लिंक के माध्यम से पढ़-सुन लें फुर्सत में कभी
आप स्वस्थ-प्रसन्न रहें , यही कामना है !!
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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