मुकद्दर की लकीरों को बदलना सीख ले राही
देखना खुद ही एक दिन उगेंगे पंख सोने के
है काम कायर का झुकाना सिर उठाकर फिर
इबादत में उठाया हाथ आसमां थाम लेता है
प्रस्फुटित हर भाव मन में वेद लिखता है
मन रमे जब प्रेम में भगवान मिलता है
आस में आँखें टिकी हैं बंद लब कुछ बोलते
प्रेम है या बेबसी हर राज दिल का खोलते
चित्र गूगल से साभार
01.08.2012
प्रेम की भाषा सुनी तो जा ही सकती है अगर पर्याप्त बेचनी और अकुलाहट हो तो देखी भी जा सकती है.कभी कोशिश करके देखिएगा
ReplyDeleteकल 03/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteकोमल भाव समेटे हुए...
अनु
भावपूर्ण सुंदर रचना.
ReplyDeleteसुंदर रचना !:)
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ..
ReplyDeleteहै काम कायर का झुकाना सिर उठाकर फिर
ReplyDeleteइबादत में उठाया हाथ आसमां थाम लेता है...
क्या खूब...
सादर बधाई.
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