Sunday, 1 July 2012

दायरा

ज़रा ठहर तेरे चेहरे तेरे नज़र से नज़र हटाने दे
फिर तेरे आँखों के फ़साने की बात पढ़ता हूँ ..

क्यूं  जले मन दीप जैसा रात के एकांत में
जागती आँखें निहारें पथ किसी के प्यार के ..

दायरा तेरा मेरा क्यूँ मेरा तेरा न बन सका
चाँद की तस्वीर तकते उठते गिरते लहर पर ..

चित्र गूगल से साभार 
01.07.2012
समर्पित स्वर्ग से उतरी अप्सरा को   

3 comments:

  1. इस नज़्म में कुछ खास है, जो मन को स्पंदित कर गया।

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  2. दायरा तेरा मेरा क्यूँ मेरा तेरा न बन सका
    चाँद की तस्वीर तकते उठते गिरते लहर पर ..
    बहुत खूब .... सुंदर !!

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  3. चाँद की तस्वीर तकते उठते गिरते लहर पर ..

    बहुत सुंदर....

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