Wednesday 12 September 2012

ये ज़िन्दगी


परछाइयों से ज़िन्दगी दबती रहीं कहीं ?
परछाइयों से ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी रहीं?

आग पर चलकर यहाँ दरिया सुखाने मैं चला
रेत के घरौंदे अगोरे सागर किनारे वक़्त बन ?

दर्द-रंज-ख़ुशी अश्कों में उभर आता है
वक़्त कभी हर जख्म को भर पाता है?

लाख कर लो यकीं और सोच लो दिल में
जो गुज़र गया वो कभी फिर लौट पाता है?

12.सितम्बर 2012

9 comments:

  1. अच्छा ही है जो नहीं लौटता
    वो न आयें तो होती है खलिश सी दिल में
    वो जो आयें तो खलिश और जवाँ होती है

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  2. बीता हुआ पल तो कभी नहीं लौटकर आता, लेकिन वक़्त ही वह मरहम है जो हर ज़ख़्म भर देता है।

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  3. लाख कर लो यकीं और सोच लो दिल में
    जो गुज़र गया वो कभी फिर लौट पाता है?
    sahi bat hai..gujaza hua lout ke kahan aa pata hai??

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  4. लाख कर लो यकीं और सोच लो दिल में
    जो गुज़र गया वो कभी फिर लौट पाता है?
    sachmuch yatharth chitran kiya hai apne .,,,,khoobsoorat gajal ke liye badhai singh sahab ji .

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  5. लाख कर लो यकीं और सोच लो दिल में
    जो गुज़र गया वो कभी फिर लौट पाता है?

    kya baat hai........
    bahut sundar..

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  6. जो बीत गयी सो बात गयी -गृह विरही उठ आगे बढ़!

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  7. लाख कर लो यकीं और सोच लो दिल में
    जो गुज़र गया वो कभी फिर लौट पाता है....nahi bilkul nahi ....

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  8. बहुत ही बढ़िया । मेरे नए पोस्ट समय सरगम पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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