Friday 29 November 2013

मुलमुला त्रिमूर्ति चौक




बिलासपुर शिवरीनारायण राष्ट्रीय राज मार्ग पर बिलासपुर से २८ कि मी दूर
स्थित मुलमुला मुख्य मंत्री चिन्हित मार्ग से वर्धा पावर प्लांट से भी जुड़ता है

मेरा गांव मुलमुला जल संरक्षण और जल संवर्धन में अग्रगण्य
अपनी बसाहट, आबादी, रकबा, कला प्रेम, ग्राम्य देवता कि पूजा
फसलों कि विविधता धान, गेहूं, अरहर, मसूर, मूंग, उड़द, गन्ना
६०० एकड़ गोचर जमीन और लगभग ४० एकड़ का बंधवा तालाब

क्षत्रियों के बीच एक कहावत प्रचलित है
भैरो, भोला, भूसाऊ, भान एकर मरम ल नई जानय भगवान
आदरणीय भैरो सिंह नरियरा, भोला सिंह कोसा रिस्दा,
भुसाऊ सिंह जी कोनार, और भान सिंह जी तबला वादक 

ये चारों व्यक्ति अपने अद्भुत गुणों के कारण समाज में विख्यात रहे

श्री भान सिंह और श्री सुखसागर सिंह क्रमशः तबला और इसराज में
अनोखे कलाकार रहे जिनकी जन्मभूमि मुलमुला है इनके मित्र
बाजामास्टर श्री पचकौड़ प्रसाद नंदेली ने मित्रता और संगत निभाई
आज मुलमुला चौक को त्रिमूर्ति चौक के नाम से जाना जाता है
जहाँ इन तीनों मूर्धन्य कलाकारों की मूर्ति स्थापित की गई है
कभी इस चौक का नाम मैं और ब्रम्हेश्वर भाई ने मस्ताना चौक रखा था 

तालाबों की कड़ी में २६ तालाब 
सिरी बंद, गलबल बंद लिमाही , सुआ तालाब, तेली तालाब
राम बांधा, मुंदी डबरी, उछना, केसरताल, फूल सागर, छिरही
डूमरइहा, बईगिनडबरी, थुहा, माधो सागर, भोला तालाब,
टारबांध बंशी डबरी, नवा तालाब शबरिया डेरा, बंधाई,
नवा तालाब, कपूर ताल, डबरी, छपरहि, गतवा और बंधवा

मुहल्ला या पारा १९ 
गुडी पारा / गौटिया पारा / बखरी, सतनामी पारा, पटेलपारा,
केंवट पारा, बावा पारा, भैना पारा, घसिया पारा, पनिका पारा,
तेली पारा, ढीमर पारा, गोंड़ पारा, कुर्मी पारा, बगीचा पारा,
राऊत पारा, फ़ोकट पारा, स्कूल पारा, पइकहा पारा, शबरिया पारा,

आबादी लगभग ४५००, रकबा २१०० एकड़ दो फसली जमीन

सभी जाति के लोग अपनी रीत रिवाज, परम्परा, धर्म निर्वहन के साथ
अपने समुदाय में अलग बसाहट में रहते हैं किन्तु प्रवास के कारण लोग
बगीचा पारा और फ़ोकट पारा में शामिलात बस गए हैं

२९ नवम्बर २०१३
समर्पित मेरे पूर्वजों को  

Monday 26 August 2013

हलषष्ठी

चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर


हलषष्ठी का व्रत माँ बेटा के अटूट रिश्ते की अनोखी कहानी
हर वर्ष पुत्र की मंगलकामना के लिये माँ व्रत को उपवास सहित मनाती है

छत्तीसगढ़ में इसे खम्हर छठ के नाम से जाना और मनाया जाता है

एक पुरानी कथा अनुसार एक महिला निःसंतान थी उसने भगवान से संतान माँगा
ईश्वर ने कहा विधान अनुसार यह सम्भव नहीं किन्तु अनुनय विनय पर शर्त रखी
संतानवती हो सकती हो किन्तु पुत्र चंचल होगा यदि घर में नहीं रुकता  है तो कोई?
मा ने कहा वो मुझ पर छोड़िये मैं मना लूंगी आप संतान दीजिये बाकी मुझ पर.….

कालान्तर में महिला को वरदानी पुत्र की प्राप्ति हुई किन्तु महान जिद्दी, कठिन हठी
कभी भी, कुछ भी, कहीं भी, किसी वक़्त, मांगता और शर्त पूरा करो नहीं तो सोच लो?
चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर

माँ का दिल भी वसुधा की तरह फैला और समुद्र की तरह रत्न गर्भा मांगो कभी भी
कल्प वृक्ष की तरह पूर्ण किया हर वक़्त बिन कन्झाये किन्तु विधी का विधान
पुत्र के मृत्यु लोक त्यागने का समय आ गया अब शुरू हो गई परीक्षा की कसौटी
चाहे अनचाहे , जाने अनजाने चीजों की मांग शुरू, किन्तु कोई कमी न रही......

आया भादों माह का कृष्ण पक्ष, षष्ठी माँ ने व्रत रखा पुत्र के दीर्घ जीवन की कामना हेतु
आज बालक ने भी मन में जाने की जिद कर रखी थी बस फिर क्या था व्रत और जिद का क्रम

बालक पहले भी जिद कर चुका था, सावन के महीने में धूल से खेलने की 
माँ जानती थी सो सहेज रखा था धूल मिट्टी के घड़े में जतन कर हुई पुरी 
एक बार क्वार के माह में कीचड़ भी माँगा माँ ने घोल रखा था गाय के नाद में
जिद की थी रात में कंचे खेलूँगा, तो गोधुली बेला में लकड़ी का भौंरा खेलने की 
भर दोपहरी अगहन के माह में खाना है महुवे की रोटी बबूल के गोंद संग 

कुछ ऐसे ही जिद की पूर्ति और उपवास में बना था फलाहार लेकिन जाने की जिद
फलाहार क्या परीक्षा की पोटली
*पसहर का चावल [ बिना हल चलाये जगह का अन्न ]
*धन मिर्ची [ उल्टा फलनेवाली मिर्च ]
*मुनगा की भाजी धन मिर्ची की छौंक लगी 
*बेर्रा भाजी [ १२ भाजियों का मिश्रण ]
*भैंस की दही 
*भैंस का ही दूध 
*भैंस का ही घी 

आज जिद ठन गई थी खेलने जाना है और वापस नहीं आना है बस
माँ बार बार मना रही थी लेकिन बालक हठी विधि के विधान की पूर्ति में अड़ा
घर की शुद्धि हेतु माँ छुही से लीप रही थी बालक ने हठ में जैसे ही जाने को कदम बढ़ाया
माँ ने गुस्से से बेटे के पीठ पर घप्प से पोतनी सहित हाथ की मुहर लगा दी 
बस क्या था टल गया विधि का विधान
तब से जिद्दी बच्चों के लिये बना है कहावत हाय रे खम्हर छठ के लइका 

२६ अगस्त २०१३
हल षष्ठी के अवसर पर रूठे जाने की जिद पर अड़े
समस्त माँ बेटों को प्रणाम सहित समर्पित
 [ कथा है कोई अंश नीचे ऊपर होगा या छुट गया ]
गृह प्रवेश पर आज भी हाथ का निशान * हाथा * लगाया जाता है 
जो द्योतक है कि यह मेरा है
चित्र गूगल से साभार    

Thursday 22 August 2013

विक्रम वेताल





राजन 
आज पूरा देश खामोश क्यों है?
दफा भी शून्य में कायम 
क्यों नहीं जला रहे हैं कैंडल 
इंडिया गेट पर?
रात लोगों को नींद आ रही है? 

पुलिस साक्ष्य तलाश रही है?
थोड़ा समय दो
जोड़ घटाव का
लोगो का भ्रम टूटने से
राजनैतिक संकट उत्पन्न होगा
चुनाव सामने है

बहन जी कहती हैं
वो हर पल साथ थी
तब भी ........
संदेह क्यों?

संत कभी दोषी नहीं होते?
बड़ी दुकानदारी है?
छोटे लेन देन का हिसाब
मुंशी से सलटा लो?
लड़की नाबालिग है?
कुछ भी बोल सकती है?

किसने बुलाया था आश्रम?
आश्रम में कौन था?
कौन सिद्ध करेगा?
यह सत्यवादी का कर्म स्थल है?
नाबालिगों की
हत्या, अनाचार
कदापि न ही?

राजन
आज लोकतंत्र की हत्या होगी?
धर्म की आड़ में बच जायेगा पाखण्डी?
धरा रह जायेगा न्याय
ये दामिनी कहाँ
न आरोपी बस कंडक्टर

साक्ष्य मिटने दो
नये साक्ष्य गढ़ने दो
फिर बैठायेंगे आयोग
आज तेवर बदल गये हैं?
समाज और मेरे भी?

जानते नहीं वो कौन है?
और कितने लोगों का प्रश्रय प्राप्त है?
मुह संभाल कर


22 अगस्त 2013 
समर्पित उस जनमानस को 
जो कायर की भांति भीड़ का हिस्सा बनते है 
सत्य के समर्थक नहीं। 

Friday 2 August 2013

दे सदा


*****
चाहा जिसे बेइंतहा फिर सिर उठाया दीदार को बड़े नाज़ से
नज़रों से ओझल क्यूं दर्द दे मेरे संग, होता ही अक्सर ऐसा है

*****
चलते हैं संग ज्यों ये ज़िन्दगी भर बनकर नदी के पाट की तरह
मिलना कहां चलते भले यूं युग युगों से, होता ही अक्सर ऐसा है

*****
न मौका न कोई दस्तूर देख लगा आवाज़ मैं हर पल साथ हूँ तेरे
मैं जिया तेरे संग, तेरे लिये मिट जाना, होता ही अक्सर ऐसा है

*****
मैं तो बंजारा हूँ लिया है हर जनम तेरी ही खातिर,तेरी बंदगी के लिये
कभी अफसोस नहीं तेरी ख़याल में,ये साँसे भी तोड़ दूं ज़िन्दगी के लिये

*****
किसी के प्यार में इतने मसरूफ नहीं कि भूल जाओ हमें उसकी याद में ऐसे
न ही इश्क में हमने इतना मगरूर बना दिया कि यूं याद कभी तड़पाये नहीं

*****
दे सदा मैं कभी भी चला आऊंगा, तेरी आहट पर भी बिन बुलाये चला आऊंगा
पर ज़रा सोच जो चला गया कभी, आना भी चाहूँ कभी तेरे पास न आ पाऊंगा

चित्र गूगल से साभार
२० जून २०१३

Monday 8 July 2013

जन्मदिन / तथागत

चित्र साभार श्री राहुल कुमार सिंह जी 


प्रिय बाबू साहब 2 दिन देर से ही सही आपके जन्मदिन पर कुछ पंक्तियाँ मेरी ओर से स्वीकार करें 

तथागत


जन्म प्रक्रिया ,मृत्यु शाश्वत 
आरम्भ से अंत तक 
सब कुछ अनिश्चित,अनित्य 
और 
नश्वर
इस यात्रा के बीच 
कभी बसंत कभी सावन,
कभी मनभावन 
कभी जलप्लावन
क्या खोया,क्या पाया
किसने कितना निभाया 
आज तक कौन जान पाया 
पीछे मुड़ कर देखें 
कुछ स्मृतियाँ 
कुछ चेहरे 
हलके गहरे 
डूबते उतारते 
समुद्र की लहरों से 
पास आते है 
थमने के पहले
न जाने 
कहाँ 
गुम हो जाते हैं 

जन्म दिन 06 जुलाई 

तथागत ब्लॉग के सृजन कर्ता मेरे बाल सखा और मार्गदर्शक 
श्री राजेश कुमार सिंह का स्नेह आपके समक्ष जो दिनांक
8 जुलाई 2013 को  टिप्पणी में मिली का प्रकाशन 

Friday 28 June 2013

फ़्राईड आम का अचार


आम का अचार बनायें स्वादिष्ट और टिकाऊ लम्बे समय के लिये बिना रसायन के प्रयोग किये
ये रेसिपी मेरी नानी तिरजुगी देवी और माता जी कुमारी देवी की देन है

१ आम का अचार बनाने के लिये सर्वप्रथम गूदेदार चेरदार अच्छी किस्म का आम लें
२ आम को साइज़ के हिसाब से आठ टुकड़ों में काट लें
३ आम के टुकड़े यथा सम्भव  एक इंच स्क्वेयर के हों
४ आम के टुकड़ों को साफ़ पानी से धो डालें ताकि कचरा न रहे
५ आम के टुकड़ों को जालीदार बर्तन में डालकर धूप में सुखा लें
६ अब सरसों के तेल में आम के टुकड़ों को डीप फ्राई कर लें

अब बारी आती है मसाले की  
यह एक मसाला का अनुपात बनायें जिसे मिलायें

१ एक किलो धुला हुआ सरसों को ग्राइंडर द्वारा सामान्य ढंग से पिस लें
२ 100 ग्राम इलायचा और लौंग लेकर बारीक पिस लें
३ 100ग्राम खड़ी सौफ लें
४ 150ग्राम साफ़ धुला हुआ करायर लेकर बारीक पीस लें
५ 100ग्रामपीसी हुई हल्दी लें
६100ग्राम पीसी हुई मिर्च ले
७ 1000ग्रामअच्छे किस्म का नमक लें
८ 250 ग्राम छिला हुआ लहसुन लें

**अब आप डीप फ़्राईड आम में पर्याप्त मात्रा में स्वाद अनुसार मसाला मिला दें
**अंत में अचार में इतना शुद्ध सरसों का तेल डालें कि अचार डूब जाये

1 आम का अचार बनाते समय पवित्रता का ध्यान रखें
2 स्नान आदि दैनिक क्रियाओं से निवृति का विशेष ध्यान रखें
3 अपवित्र बर्तन का प्रयोग न करें
4 नया अचार धुले हुए बर्तन में ही रखें
5 सिरेमिक या कांच का बर्तन सबसे उपयुक्त होता है

*विशेषता यह है कि आम का अचार मसाला मिलाकर तुरंत खा सकते हैं
*यह विधि महँगी किन्तु अचार को एक वर्ष तक सुरक्षित रख सकते हैं
*इस विधि में किसी भी रसायन का उपयोग नहींकिया गया है

***** आप पसंद करें तो कटहल को भी आम के टुकड़ों की साइज़ में काटकर उसे भी
डीप फ्राई करके आम के अचार में मिला दें बन गया कटहल और आम का मिक्स अचार

28 जून 2013

समर्पित महिला जगत को जिन्हें गृह लक्ष्मी का सम्मान प्राप्त है 

Tuesday 11 June 2013

हक



तुम कुंठित हो?
राम को तुमने जन्म नहीं दिया
तुम कुपित हो?
बुद्ध तुम्हारी कोख ने नहीं जना
क्यूँ क्रोधित हो?
तुम यशोदानंदन की माँ नहीं

तुम्हे गर्व नहीं?
कि तुम
एक विकलांग बेटी की माँ हो
तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस लगी?
दे दिया जन्म पुत्री को

पुत्र ही जन लेती तो क्या हो जाता?
पुत्री ने हंसने का हक छीन लिया?

गर्व संतान पर?
या लिंग संरचना पर?
या क्रोध ईश्वर की कृति पर?
वा अपनी कोख पर?

कल वो करेंगे फैसला
सही गलत का

तब न तुम होगे न मैं
सिरजन को सृजन रहने दो

11 जून 2013
समर्पित माँ को
जिन्हें गर्व है अपनी पुत्री पर 

Thursday 23 May 2013

आईना

कभी खुद से बातें करो, हर फासला तय हो जायेगा 

मैं आईना बनकर जब भी खड़ा होता हूँ
अक्श अपना देख बुत सी बन जाती हो

खता मेरी या नसीब तेरा तू ही जाने जानां
मैं खुदा तो नहीं सवाल दर सवाल कैसे करूँ


चलो तुम चार कदम फासला तय करने मंजिल
कारवां बन जायेगा गर पाक इरादे हों दिल में

चुनी खुद राह अपनी फिर नीची नज़रें क्यूँ हैं?
शर्मिन्दगी फैसले पर या जहां को जान लिया?

जब मन खाली है तितली बन जाती हो
जब मन भारी है सागर सी बन जाती हो

कैसे बतलायें किसको समझाये हर पल
चंचल ये मन क्यूं बन जाता सवाली है


ज़िन्दगी हसीन ही होती है जीने का अंदाज़ जुदा होता है
इश्क, इबादत, सौदा, कुछ भी मैं तो मानूं ये खुदा होता है

२२ मई २०१३
तथागत ब्लॉग के सर्जक
श्री राजेश कुमार सिंह को समर्पित
चित्र गूगल से साभार 

Thursday 16 May 2013

गोदरिया बाबा / भरथरी

हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव 
नरियरा मुख्यमंत्री चिन्हित मार्ग पर स्थित गाँव अपने धर्म निर्वहन और राधावल्लभ
मंदिर संग दीवालों पर अंकित दुर्लभ चित्रकारी के लिए बीस कोस तक जाना जाता है।
यह मंदिर नाटक, लीला और रथयात्रा के लिये आज भी बड़ी श्रद्धा से स्मरण किया जाता
है दशहरा और रथयात्रा की परम्परा जीवंत है  एक समय इस मंदिर के सामने रायगढ़
नरेश राजा चक्रधर सिंह जी के राज नर्तक कार्तिक राम, उसके पुत्र रामलाल, पद्म श्री
कल्याण दास जी, और वेद मणि सिंह पखावज,तबला वादक भान सिंह, मेरे चाचा
श्री बीर सिंह, इसराज वादकसुख सागर सिंह, हारमोनियम पर नंदेली के पंचकौड़
प्रसाद जी, दद्दू खां जी, सुलक्षणा पंडित, श्यामशरण सिंह, श्री विशेश्वर सिंह जी
ने अपनी कला से दर्शकों को मंत्र मुग्ध किया।

ये एक संजोग और मेरा सौभाग्य है  कि दादा श्री भान सिंह के सानिध्य में  इन्हें सुनने
और इनकी कला वादन, गायन, नृत्य प्रदर्शन के दौरान संग रहने का सौभाग्य मिल गया।

मंदिर में संत, फ़क़ीर, और बाबा को आश्रय मिला ही गोदरिया बाबा जो भरथरी
चरित गायक ने भी अपना डेरा आज तक बनाया है लगभग १९६८ में कक्षा ८ वीं
की परीक्षा के दौरान अपनी छोटी बुआ करुणा दीदी के घर रुका था यह भी संजोग
कि आप श्री विसेश्वर सिंह की बहु हैं और घर मंदिर के सामने तब के भरथरी के
गाये गीत जेहन में आज भी कानों में गूंज रहे हैं

कल भी इनका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया था आज जिज्ञासावश आपसे बांटता हूँ

*
चाहे भाई कितना बैरी हो
उससे कुछ भी छुपाना नहीं चाहिये
**
चाहे पत्नी कितनी प्यारी हो
उससे सब कुछ बतलाना नहीं चाहिये
***
चाहे बेटी कितना प्यारी हो
उससे हर घर घुमाना नहीं चाहिये
****
चाहे बेटा कितना दुलारा हो
उससे सिर पर चढ़ाना नहीं चाहिये

ये गोदरिया बाबा बड़े निर्विकार भाव से भरथरी चरित के साथ इन गीतों को बड़े आनद से गुनगुनाते गाते है किन्तु जितना कह देना आसान है इन्हें इनके मूल बोल के साथ सुन पाना आसान नहीं।

आज इन कला मर्मज्ञों में श्री वेदमणि जी रायगढ़, श्री रामलाल जी रायगढ़, सुलक्षणा पंडित मुंबई ही वसुधा पर हैं शेष को मेरा सादर प्रणाम सहित नरियरा के बुजुर्गों को नमन जिन्होंने मंदिर बनवाया।

प्रार्थना रात को  आज भी मंदिर में गूंजती है
*****श्री रामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणं*****

१६ मई २०१३
चित्र गूगल से साभार
समर्पित स्व. शशि भूषण भाई को जिनकी कमी खलती है। 

Tuesday 7 May 2013

आसां है?

आसां है दर्द में हंसना और ख़ुशी में आँखे छलकाना? 

*
बहुत आसां है?
दर्द में रोना
और
ख़ुशी में हंसना?
लेकिन
तुम्हारी आँखों से
मैंने भी सीख लिया
दर्द में हंसना
और
ख़ुशी में रोना

**
दर्द को सहेजना
दिल की गहराई में
बाँट लेना दर्द भी
ख़ुशी के पलों में
पलकों को बिन भिगोये
ये फन भी सिखला दिया
राह चलते चलते
एक दिन यूँ ही
***
मैं तो जानता ही नहीं
दर्द में हंसना और हँसाना
छलक जाते हैं आंसू
गम में
तुम्हारी भीगी आँखों में
झांकता हूँ जब

कभी कभी आँखे तेरी
धोखा दे जाती हैं

०७ मई २०१३

Friday 19 April 2013

आधी उम्र



बीत जाते है
प्रतिदिन कई घंटे

नहाने, खाने, श्रृंगार, यात्रा, संकलन,
वार्ता, दान, ज्ञान, निर्माण, विध्वंस,
लड़ाई, झगडा, संतान उत्पत्ति,
शादी ब्याह, रख रखाव, लेन देन,
दायित्वों के निर्वहन में

आधी उम्र बीत गई
रात के अँधेरे में करवट बदलते
८ बरस बीत गये  बचपन के लाड़ में
शायद बीत जायेगा
५ बरस बुढापा में

जीवन का
जोड़, घटाव, गुणा और भाग

कितने कम समय के लिए

इतने समय के लिए
वैमनस्यता, बैर, राग द्वेष?
घृणा के लिए समय?
तो प्रेम क्यों नहीं?

कुछ पल ही सही
ज़िन्दगी जीने के लिए
चलो रोपते है
प्रेम तरु

पल्लवित होगा सींचेंगे श्रमकण
शाखाओं पर होंगे हरे पत्ते
फूल और फल लगें न लगे
कम से कम छांव तो मिलेगी

चित्र गूगल से साभार
चन्दन ज्वेलर्स के कर्ता धर्ता
श्री मदन मामा को समर्पित 

Thursday 28 March 2013

पत्थर



*
पत्थरों के शहर में ही कांच के मिलते हैं कद्रदां
वरना पारस भी पत्थरों को कनक बनाता जाता

**
पत्थर दिल इंसान ही करता है प्यार बेइंतहा सबसे
पत्थरो से सदा प्रेम का दरिया बहता देखा है हमने

***
चोट से नरम पानी के पत्थर टूट जाता है
पत्थरों के बीच पत्थर चोट कहां पाता है

****
पत्थरों के शहर में पत्थर दिल इंसान मोम का देखा
अश्क आंखों में, अंगार जेहन में, दर्द इंसान का देखा

*****
पत्थरों से बनाये बुत को हर पल पूजता इंसान है
कम ही इंसान इंसान को पूजते हैं फ़ना होने पर
चित्र गूगल से साभार

Friday 1 March 2013

शालीनता

शालीनता अकलतरा में


बचपन में अकलतरा अपने सौहाद्रता, सौजन्यता, प्रेम, सेवा, त्याग, सदभावना,
मिलनसारिता, अनेकता में एकता, और सबसे ऊपर अपने विनम्रता के लिए
जाना जाता था। शांत, सौम्य वातावरण में लोगो का मेल मिलाप सभी त्यौहारों में
दशहरा, दीपावली, भोजली, दुर्गा उत्सव,की बात अलग हैं, अकाल में कुएं से पानी
निकालते समय भी बाटते देखा प्रेम को खुले हाथों निर्विकार।

यह क़स्बा बाम्बे हावड़ा मुख्य रेल लाइन पर बिलासपुर से २८ कि.मी.दूर स्थित।

*****कल*****

बखरी गए थे क्या चन्दा के लिए?
पूछते थे नगर सेठ मुस्कुराकर
एक रूपया कम लिखना
महाराज के चंदे से

*****आज *****
१*
कल तक ऐतबार था जिन दोस्तों पर
अज़ीज़ थे
मैं भी था महफिलों में
आज मुंह फेर लिया मेरी लाचारी पे
लगते है अजीब
निकल जाते हैं सामने से
मुस्कुराकर
कोई शिकवा नहीं न गिला
न कोई तकलीफ
अब मैं उन्हें जान गया।

२**
लगता है सांस थम जायेगी
थाम लेता हूँ दम
कल तक दस्तक देता था
पत्नि और भाई के लिये
आज
ऐतबार हो गया खुद पे
खुदा से ज्यादा
मैं जानता हूँ
लोग आयेंगे
मुझसे मिलने
तब मैं मुंह फेर लूँगा

०२. ०३. २०१३
मित्र अनिल जैन को समर्पित
चित्र गूगल से साभार

[ बखरी अर्थात श्री राहुल कुमार सिंह जी *सिंहावलोकन * का घर ]
[ महाराज अर्थात श्री राजेंद्र कुमार सिंह जी या श्री सत्येन्द्र कुमार सिंह जी ] 

Thursday 31 January 2013

पंचर



ज़िन्दगी में क्या कुछ नहीं सहा जाता
लेकिन कभी कभी बयान करना कठिन हो जाता है
चलिये साझा करते हैं एक आपबीती खट्टी मीठी याद
जब हम चलते थे और लोग मुड़कर देख ही लेते थे

वर्ष 1994 भरी सुबह साइकल ने दगा दे दिया
तब सेलरी कम थी, पंचर हो गई साइकल रानी
कोरबा स्थित गेवरा रोड पण्डित जी की दुकान पहुंचे
पंचर बनाते देर देखकर किराये की साइकल मांगी

पण्डित जी ने प्रसन्न मुद्रा में नाम पूछा बोलिये?
आपका नाम टांक देता हूँ रजिस्टर में ताकि सनद रहे
हमने भी तुरत बतला दिया लिखिये रमाकांत सिंह
नाम पूरा होने के पहले कर्कश आवाज में डांट पड़ी

रखो साइकल और दुकान से बाहर निकल जाओ
हमने पंडित जी से पूछा किस बात के लिए गुर्राहट
उसने कहा बात मत करो गाड़ी रखो और दफा हो जाओ
अब हमें भी गुस्सा आ गया हमने भी कड़क हो कारण पूछा

पंडित ने बुरी नज़र से देखकर कहा जवाब क्यों दें
गाड़ी नहीं देनी है अपना रस्ता नापो समय खोटी मत करो
हमने भी आव देखा न ताव 500रूपया निकाल गल्ले पर पटका
गाड़ी की कीमत रखो नई गाड़ी दो, अपना मुह मत खोलो

क्या कहा मुह मत खोलें, अरे नहीं देनी है गाड़ी वाड़ी आगे बढ़ो
क्यों नहीं दोगे, दुकान काहे खोल रखे, हो देना पड़ेगा
बस वार्ता लाप तेज पर तेज, हमने पूछा कारन बतलाओ?
कारन क्या बतावें का नाम बताया रमाकांत?

बस ये ही करनवा है ये गलत नाम हम पचा नहीं पाये
नाम में क्या गड़बड़ी है नाम तो साफ सुथरा है
का बोले इ नाम साफ सुथरा है तो बाकि सब ख़राब?
अरे हाँ रमा याने लक्ष्मी, और कान्त याने पति

मतलब विष्णु भगवान
काहे का बिशनु भगवान

आज तक ऐ नाम का कौनो आदमी साफ सुथरा नहीं मिला
त तुम का सीधे बिशनु जी मिलोगे?
नहीं देना गाड़ी मुड़ मत पिरवाइए निकल लीजिये
गाड़ी लाख समझाने के बाद भी नहीं मिली

आज तक मुझे मेरे नाम का रहस्य समझ नहीं आया
आखिर क्या गड़बड़ झाला है मेरे नाम में?

01 फरवरी 2013

     

Sunday 13 January 2013

मोती




ये अक्सर हो जाता है अक्सर हर बार क्यूँ तेरे साथ ही
मेरी माँ, बहन, बेटी मुझसे ही पूछ बैठते हैं हर पल क्यूँ?

न होगा हादसा न आंसूं न तमाशा बनने देंगे
न होगा मौन जन दुर्योधन सजायेगा सभा

ज़िन्दगी पास तेरे सोचता हूँ अक्सर हर लम्हा
तुझसे नाराज़ हूँ मैं या फिर नाराज़ मुझसे तू

बोयेंगे मोती के दाने उगायेंगे महल सपनों के
रचेंगे इस धरा पर हम अपने आस हाथों से

हौसला रख जवाब देने का जहां की रुत बदल जायेगी
सभी बेटी, बहन, बहू, माँ राह चैन के चलती जायेगी

14.01.2013
चित्र गूगल से  साभार