चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर |
हलषष्ठी का व्रत माँ बेटा के अटूट रिश्ते की अनोखी कहानी
हर वर्ष पुत्र की मंगलकामना के लिये माँ व्रत को उपवास सहित मनाती है
छत्तीसगढ़ में इसे खम्हर छठ के नाम से जाना और मनाया जाता है
एक पुरानी कथा अनुसार एक महिला निःसंतान थी उसने भगवान से संतान माँगा
ईश्वर ने कहा विधान अनुसार यह सम्भव नहीं किन्तु अनुनय विनय पर शर्त रखी
संतानवती हो सकती हो किन्तु पुत्र चंचल होगा यदि घर में नहीं रुकता है तो कोई?
मा ने कहा वो मुझ पर छोड़िये मैं मना लूंगी आप संतान दीजिये बाकी मुझ पर.….
कालान्तर में महिला को वरदानी पुत्र की प्राप्ति हुई किन्तु महान जिद्दी, कठिन हठी
कभी भी, कुछ भी, कहीं भी, किसी वक़्त, मांगता और शर्त पूरा करो नहीं तो सोच लो?
चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर
माँ का दिल भी वसुधा की तरह फैला और समुद्र की तरह रत्न गर्भा मांगो कभी भी
कल्प वृक्ष की तरह पूर्ण किया हर वक़्त बिन कन्झाये किन्तु विधी का विधान
पुत्र के मृत्यु लोक त्यागने का समय आ गया अब शुरू हो गई परीक्षा की कसौटी
चाहे अनचाहे , जाने अनजाने चीजों की मांग शुरू, किन्तु कोई कमी न रही......
आया भादों माह का कृष्ण पक्ष, षष्ठी माँ ने व्रत रखा पुत्र के दीर्घ जीवन की कामना हेतु
आज बालक ने भी मन में जाने की जिद कर रखी थी बस फिर क्या था व्रत और जिद का क्रम
बालक पहले भी जिद कर चुका था, सावन के महीने में धूल से खेलने की
माँ जानती थी सो सहेज रखा था धूल मिट्टी के घड़े में जतन कर हुई पुरी
एक बार क्वार के माह में कीचड़ भी माँगा माँ ने घोल रखा था गाय के नाद में
जिद की थी रात में कंचे खेलूँगा, तो गोधुली बेला में लकड़ी का भौंरा खेलने की
भर दोपहरी अगहन के माह में खाना है महुवे की रोटी बबूल के गोंद संग
कुछ ऐसे ही जिद की पूर्ति और उपवास में बना था फलाहार लेकिन जाने की जिद
फलाहार क्या परीक्षा की पोटली
*पसहर का चावल [ बिना हल चलाये जगह का अन्न ]
*धन मिर्ची [ उल्टा फलनेवाली मिर्च ]
*मुनगा की भाजी धन मिर्ची की छौंक लगी
*बेर्रा भाजी [ १२ भाजियों का मिश्रण ]
*भैंस की दही
*भैंस का ही दूध
*भैंस का ही घी
आज जिद ठन गई थी खेलने जाना है और वापस नहीं आना है बस
माँ बार बार मना रही थी लेकिन बालक हठी विधि के विधान की पूर्ति में अड़ा
घर की शुद्धि हेतु माँ छुही से लीप रही थी बालक ने हठ में जैसे ही जाने को कदम बढ़ाया
माँ ने गुस्से से बेटे के पीठ पर घप्प से पोतनी सहित हाथ की मुहर लगा दी
बस क्या था टल गया विधि का विधान
तब से जिद्दी बच्चों के लिये बना है कहावत हाय रे खम्हर छठ के लइका
२६ अगस्त २०१३
हल षष्ठी के अवसर पर रूठे जाने की जिद पर अड़े
समस्त माँ बेटों को प्रणाम सहित समर्पित
[ कथा है कोई अंश नीचे ऊपर होगा या छुट गया ]
गृह प्रवेश पर आज भी हाथ का निशान * हाथा * लगाया जाता है
जो द्योतक है कि यह मेरा है
चित्र गूगल से साभार
सुन्दर प्रस्तुति-बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteमाँ का मेहनत सफल हुआ... अच्छी प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः8
यह कथा पहली बार पढ़ी ....
ReplyDeleteमै भी पहली बार पढ़ रही हूँ यह कथा !
ReplyDeletemaine bhi aaj hi padha .....
ReplyDeleteजानी पहचानी कथा को बेहद प्रभावशाली एवं रोचक अंदाज में लिखा गया है
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है-
पीड़ाओं का आग्रह---
माँ पुत्र का सम्बन्ध सबसे ऊपर और सात्विक है ... मेरे भी पोस्ट पर आये
ReplyDeleteसुन्दर और धार्मिक ।
ReplyDeleteमै भी पहली बार पढ़ रहा हूँ यह कथा ! रोचक जानकारी हम तक पहुंचाने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
ReplyDeleteकुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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rochakta ke sath sundar dharmik katha ....abhar singh sahab
ReplyDeleteRamakanth Singh sir
ReplyDeleteNamaste and Happy Diwali wishes to you, to your family members and friends.
Ramakanth Singh sir your poems and stories are veyy thoughtful and meaningful.
Ramakanth Singh sir this is my Diwali message "Lamps of India" which i shared in my Heritage of India blog.
http://indian-heritage-and-culture.blogspot.in/2013/09/lamps-of-india.html
Ramakanth Singh sir please read my Lamps of India message and give your valuable comments in english language.
Ramakanth Singh sir i hope you like my blog and join as a member to my Heritage of India blog and having hope to receive your english comments.