Friday, 19 April 2013

आधी उम्र



बीत जाते है
प्रतिदिन कई घंटे

नहाने, खाने, श्रृंगार, यात्रा, संकलन,
वार्ता, दान, ज्ञान, निर्माण, विध्वंस,
लड़ाई, झगडा, संतान उत्पत्ति,
शादी ब्याह, रख रखाव, लेन देन,
दायित्वों के निर्वहन में

आधी उम्र बीत गई
रात के अँधेरे में करवट बदलते
८ बरस बीत गये  बचपन के लाड़ में
शायद बीत जायेगा
५ बरस बुढापा में

जीवन का
जोड़, घटाव, गुणा और भाग

कितने कम समय के लिए

इतने समय के लिए
वैमनस्यता, बैर, राग द्वेष?
घृणा के लिए समय?
तो प्रेम क्यों नहीं?

कुछ पल ही सही
ज़िन्दगी जीने के लिए
चलो रोपते है
प्रेम तरु

पल्लवित होगा सींचेंगे श्रमकण
शाखाओं पर होंगे हरे पत्ते
फूल और फल लगें न लगे
कम से कम छांव तो मिलेगी

चित्र गूगल से साभार
चन्दन ज्वेलर्स के कर्ता धर्ता
श्री मदन मामा को समर्पित 

9 comments:

  1. bahut sundar vivhar prawah कुछ पल ही सही
    ज़िन्दगी जीने के लिए
    चलो रोपते है
    प्रेम तरु

    पल्लवित होगा सींचेंगे श्रमकण
    शाखाओं पर होंगे हरे पत्ते
    फूल और फल लगें न लगे
    कम से कम छांव तो मिलेगी

    चित्र गूगल से साभार
    चन्दन ज्वेलर्स के कर्ता धर्ता
    श्री मदन मामा को समर्पित

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  2. पल्लवित होगा सींचेंगे श्रमकण
    शाखाओं पर होंगे हरे पत्ते
    फूल और फल लगें न लगे
    कम से कम छांव तो मिलेगी
    -अत्यंत सुन्दर और भावपूर रचना ,राम नवमी की शुभकामनाएं
    latest post तुम अनन्त

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  3. कुछ पल ही सही
    ज़िन्दगी जीने के लिए
    चलो रोपते है
    प्रेम तरु..bahut acchi soch ......

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  4. पल्लवित होगा सींचेंगे श्रमकण
    शाखाओं पर होंगे हरे पत्ते
    फूल और फल लगें न लगे
    कम से कम छांव तो मिलेगी------
    सहजता से कही हुई गहरी बात
    बहुत सच कहा छाँव तो मिलेगी
    सुंदर रचना बधाई

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  5. पल्लवित होगा सींचेंगे श्रमकण
    शाखाओं पर होंगे हरे पत्ते
    फूल और फल लगें न लगे
    कम से कम छांव तो मिलेगी.

    सुंदर विचार.

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  6. आपकी यह पोस्ट आज के (२ मई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - आज की बड़ी खबर सरबजीत की मौत पर लिंक की जा रही है | हमारे बुलेटिन पर आपका हार्दिक स्वागत है | आभार और बधाई |

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  7. बहुत सुंदर सोच ..... वाकई कितना कम समय होता है वो भी द्वेष में ही बीत जाता है ...

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  8. सचमुच जिन्दगी योंही बीतजाती है ।

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  9. 'प्रसाद'जी की पंक्तियाँ भी यही कहती हैं -
    'घने प्रेम-तरु तले,
    बैठ छाँह लो भव तापों से तापित और जले!'

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