Thursday, 28 March 2013

पत्थर



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पत्थरों के शहर में ही कांच के मिलते हैं कद्रदां
वरना पारस भी पत्थरों को कनक बनाता जाता

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पत्थर दिल इंसान ही करता है प्यार बेइंतहा सबसे
पत्थरो से सदा प्रेम का दरिया बहता देखा है हमने

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चोट से नरम पानी के पत्थर टूट जाता है
पत्थरों के बीच पत्थर चोट कहां पाता है

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पत्थरों के शहर में पत्थर दिल इंसान मोम का देखा
अश्क आंखों में, अंगार जेहन में, दर्द इंसान का देखा

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पत्थरों से बनाये बुत को हर पल पूजता इंसान है
कम ही इंसान इंसान को पूजते हैं फ़ना होने पर
चित्र गूगल से साभार

11 comments:

  1. सुन्दर रचना आपने किशोरावस्था के एक लोकप्रिय गाने की याद दिला दी :-

    "पत्थर के सनम तुझे हमने मोहब्बत का ख़ुदा जाना "

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.

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  3. सही कहा आपने सर!
    पत्थर के दर्द को उजागर करती रचना!
    ~सादर!!!

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  4. सही कहा आपने सर!
    पत्थर के दर्द को उजागर करती रचना!
    ~सादर!!!

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  5. dastane dard "ye pathhro ka sahar hai,jara fashle se chala karo.....

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  6. पत्थर मन...पत्थर जीवन, पत्थर पत्थर... बहुत खूब.

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  7. गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

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  8. वाह! क्या कविता कही आपने | बधाई

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  9. पत्थर दिल इंसान ही करता है प्यार बेइंतहा सबसे
    पत्थरो से सदा प्रेम का दरिया बहता देखा है हमने
    waah bahut acchi abhiwayakti ....

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