* पत्थरों के शहर में ही कांच के मिलते हैं कद्रदां वरना पारस भी पत्थरों को कनक बनाता जाता ** पत्थर दिल इंसान ही करता है प्यार बेइंतहा सबसे पत्थरो से सदा प्रेम का दरिया बहता देखा है हमने *** चोट से नरम पानी के पत्थर टूट जाता है पत्थरों के बीच पत्थर चोट कहां पाता है **** पत्थरों के शहर में पत्थर दिल इंसान मोम का देखा अश्क आंखों में, अंगार जेहन में, दर्द इंसान का देखा ***** पत्थरों से बनाये बुत को हर पल पूजता इंसान है कम ही इंसान इंसान को पूजते हैं फ़ना होने पर चित्र गूगल से साभार |
सुन्दर रचना आपने किशोरावस्था के एक लोकप्रिय गाने की याद दिला दी :-
ReplyDelete"पत्थर के सनम तुझे हमने मोहब्बत का ख़ुदा जाना "
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteअच्छी रचना.
ReplyDeleteसही कहा आपने सर!
ReplyDeleteपत्थर के दर्द को उजागर करती रचना!
~सादर!!!
सही कहा आपने सर!
ReplyDeleteपत्थर के दर्द को उजागर करती रचना!
~सादर!!!
dastane dard "ye pathhro ka sahar hai,jara fashle se chala karo.....
ReplyDeleteपत्थर मन...पत्थर जीवन, पत्थर पत्थर... बहुत खूब.
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ReplyDeleteगहन अनुभूति
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
Behatarin,subhkamnayen
ReplyDeleteवाह! क्या कविता कही आपने | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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पत्थर दिल इंसान ही करता है प्यार बेइंतहा सबसे
ReplyDeleteपत्थरो से सदा प्रेम का दरिया बहता देखा है हमने
waah bahut acchi abhiwayakti ....