Friday 2 August 2013

दे सदा


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चाहा जिसे बेइंतहा फिर सिर उठाया दीदार को बड़े नाज़ से
नज़रों से ओझल क्यूं दर्द दे मेरे संग, होता ही अक्सर ऐसा है

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चलते हैं संग ज्यों ये ज़िन्दगी भर बनकर नदी के पाट की तरह
मिलना कहां चलते भले यूं युग युगों से, होता ही अक्सर ऐसा है

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न मौका न कोई दस्तूर देख लगा आवाज़ मैं हर पल साथ हूँ तेरे
मैं जिया तेरे संग, तेरे लिये मिट जाना, होता ही अक्सर ऐसा है

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मैं तो बंजारा हूँ लिया है हर जनम तेरी ही खातिर,तेरी बंदगी के लिये
कभी अफसोस नहीं तेरी ख़याल में,ये साँसे भी तोड़ दूं ज़िन्दगी के लिये

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किसी के प्यार में इतने मसरूफ नहीं कि भूल जाओ हमें उसकी याद में ऐसे
न ही इश्क में हमने इतना मगरूर बना दिया कि यूं याद कभी तड़पाये नहीं

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दे सदा मैं कभी भी चला आऊंगा, तेरी आहट पर भी बिन बुलाये चला आऊंगा
पर ज़रा सोच जो चला गया कभी, आना भी चाहूँ कभी तेरे पास न आ पाऊंगा

चित्र गूगल से साभार
२० जून २०१३

12 comments:

  1. बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  2. बहुत सुंदर.
    मजा आ गया

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  3. अतिशय भावपूर्ण व्यंजना !

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  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति !!

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  5. दे सदा मैं कभी भी चला आऊंगा तेरी आहट पर भी बिन बुलाये चला आऊंगा
    पर ज़रा सोच जो चला गया कभी आना भी चाहूँ कभी तेरे पास न आ पाऊंगा

    Very nice.

    .

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  6. कल 05/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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    1. यशवंत माथुर जी आपके स्नेह का आभारी

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  7. बहुत बढ़िया...........

    लाजवाब भावाव्यक्ति..

    सादर
    अनु

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  8. किसी के प्यार में इतने मसरूफ नहीं कि भूल जाओ हमें उसकी याद में ऐसे
    न ही इश्क में हमने इतना मगरूर बना दिया कि यूं याद कभी तड़पाये नहीं

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    दे सदा मैं कभी भी चला आऊंगा तेरी आहट पर भी बिन बुलाये चला आऊंगा
    पर ज़रा सोच जो चला गया कभी आना भी चाहूँ कभी तेरे पास न आ पाऊंगा

    वाह ,लाजवाब दिल को सुकून मिला ये पढ़कर , ढेरो शुभकामनाये ,

    यहाँ भी पधारे


    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_4.html

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  9. बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  10. प्रभावी अभिव्यक्ति...बधाई...

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