Monday, 26 August 2013

हलषष्ठी

चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर


हलषष्ठी का व्रत माँ बेटा के अटूट रिश्ते की अनोखी कहानी
हर वर्ष पुत्र की मंगलकामना के लिये माँ व्रत को उपवास सहित मनाती है

छत्तीसगढ़ में इसे खम्हर छठ के नाम से जाना और मनाया जाता है

एक पुरानी कथा अनुसार एक महिला निःसंतान थी उसने भगवान से संतान माँगा
ईश्वर ने कहा विधान अनुसार यह सम्भव नहीं किन्तु अनुनय विनय पर शर्त रखी
संतानवती हो सकती हो किन्तु पुत्र चंचल होगा यदि घर में नहीं रुकता  है तो कोई?
मा ने कहा वो मुझ पर छोड़िये मैं मना लूंगी आप संतान दीजिये बाकी मुझ पर.….

कालान्तर में महिला को वरदानी पुत्र की प्राप्ति हुई किन्तु महान जिद्दी, कठिन हठी
कभी भी, कुछ भी, कहीं भी, किसी वक़्त, मांगता और शर्त पूरा करो नहीं तो सोच लो?
चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर

माँ का दिल भी वसुधा की तरह फैला और समुद्र की तरह रत्न गर्भा मांगो कभी भी
कल्प वृक्ष की तरह पूर्ण किया हर वक़्त बिन कन्झाये किन्तु विधी का विधान
पुत्र के मृत्यु लोक त्यागने का समय आ गया अब शुरू हो गई परीक्षा की कसौटी
चाहे अनचाहे , जाने अनजाने चीजों की मांग शुरू, किन्तु कोई कमी न रही......

आया भादों माह का कृष्ण पक्ष, षष्ठी माँ ने व्रत रखा पुत्र के दीर्घ जीवन की कामना हेतु
आज बालक ने भी मन में जाने की जिद कर रखी थी बस फिर क्या था व्रत और जिद का क्रम

बालक पहले भी जिद कर चुका था, सावन के महीने में धूल से खेलने की 
माँ जानती थी सो सहेज रखा था धूल मिट्टी के घड़े में जतन कर हुई पुरी 
एक बार क्वार के माह में कीचड़ भी माँगा माँ ने घोल रखा था गाय के नाद में
जिद की थी रात में कंचे खेलूँगा, तो गोधुली बेला में लकड़ी का भौंरा खेलने की 
भर दोपहरी अगहन के माह में खाना है महुवे की रोटी बबूल के गोंद संग 

कुछ ऐसे ही जिद की पूर्ति और उपवास में बना था फलाहार लेकिन जाने की जिद
फलाहार क्या परीक्षा की पोटली
*पसहर का चावल [ बिना हल चलाये जगह का अन्न ]
*धन मिर्ची [ उल्टा फलनेवाली मिर्च ]
*मुनगा की भाजी धन मिर्ची की छौंक लगी 
*बेर्रा भाजी [ १२ भाजियों का मिश्रण ]
*भैंस की दही 
*भैंस का ही दूध 
*भैंस का ही घी 

आज जिद ठन गई थी खेलने जाना है और वापस नहीं आना है बस
माँ बार बार मना रही थी लेकिन बालक हठी विधि के विधान की पूर्ति में अड़ा
घर की शुद्धि हेतु माँ छुही से लीप रही थी बालक ने हठ में जैसे ही जाने को कदम बढ़ाया
माँ ने गुस्से से बेटे के पीठ पर घप्प से पोतनी सहित हाथ की मुहर लगा दी 
बस क्या था टल गया विधि का विधान
तब से जिद्दी बच्चों के लिये बना है कहावत हाय रे खम्हर छठ के लइका 

२६ अगस्त २०१३
हल षष्ठी के अवसर पर रूठे जाने की जिद पर अड़े
समस्त माँ बेटों को प्रणाम सहित समर्पित
 [ कथा है कोई अंश नीचे ऊपर होगा या छुट गया ]
गृह प्रवेश पर आज भी हाथ का निशान * हाथा * लगाया जाता है 
जो द्योतक है कि यह मेरा है
चित्र गूगल से साभार    

Thursday, 22 August 2013

विक्रम वेताल





राजन 
आज पूरा देश खामोश क्यों है?
दफा भी शून्य में कायम 
क्यों नहीं जला रहे हैं कैंडल 
इंडिया गेट पर?
रात लोगों को नींद आ रही है? 

पुलिस साक्ष्य तलाश रही है?
थोड़ा समय दो
जोड़ घटाव का
लोगो का भ्रम टूटने से
राजनैतिक संकट उत्पन्न होगा
चुनाव सामने है

बहन जी कहती हैं
वो हर पल साथ थी
तब भी ........
संदेह क्यों?

संत कभी दोषी नहीं होते?
बड़ी दुकानदारी है?
छोटे लेन देन का हिसाब
मुंशी से सलटा लो?
लड़की नाबालिग है?
कुछ भी बोल सकती है?

किसने बुलाया था आश्रम?
आश्रम में कौन था?
कौन सिद्ध करेगा?
यह सत्यवादी का कर्म स्थल है?
नाबालिगों की
हत्या, अनाचार
कदापि न ही?

राजन
आज लोकतंत्र की हत्या होगी?
धर्म की आड़ में बच जायेगा पाखण्डी?
धरा रह जायेगा न्याय
ये दामिनी कहाँ
न आरोपी बस कंडक्टर

साक्ष्य मिटने दो
नये साक्ष्य गढ़ने दो
फिर बैठायेंगे आयोग
आज तेवर बदल गये हैं?
समाज और मेरे भी?

जानते नहीं वो कौन है?
और कितने लोगों का प्रश्रय प्राप्त है?
मुह संभाल कर


22 अगस्त 2013 
समर्पित उस जनमानस को 
जो कायर की भांति भीड़ का हिस्सा बनते है 
सत्य के समर्थक नहीं। 

Friday, 2 August 2013

दे सदा


*****
चाहा जिसे बेइंतहा फिर सिर उठाया दीदार को बड़े नाज़ से
नज़रों से ओझल क्यूं दर्द दे मेरे संग, होता ही अक्सर ऐसा है

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चलते हैं संग ज्यों ये ज़िन्दगी भर बनकर नदी के पाट की तरह
मिलना कहां चलते भले यूं युग युगों से, होता ही अक्सर ऐसा है

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न मौका न कोई दस्तूर देख लगा आवाज़ मैं हर पल साथ हूँ तेरे
मैं जिया तेरे संग, तेरे लिये मिट जाना, होता ही अक्सर ऐसा है

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मैं तो बंजारा हूँ लिया है हर जनम तेरी ही खातिर,तेरी बंदगी के लिये
कभी अफसोस नहीं तेरी ख़याल में,ये साँसे भी तोड़ दूं ज़िन्दगी के लिये

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किसी के प्यार में इतने मसरूफ नहीं कि भूल जाओ हमें उसकी याद में ऐसे
न ही इश्क में हमने इतना मगरूर बना दिया कि यूं याद कभी तड़पाये नहीं

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दे सदा मैं कभी भी चला आऊंगा, तेरी आहट पर भी बिन बुलाये चला आऊंगा
पर ज़रा सोच जो चला गया कभी, आना भी चाहूँ कभी तेरे पास न आ पाऊंगा

चित्र गूगल से साभार
२० जून २०१३