Thursday, 23 May 2013

आईना

कभी खुद से बातें करो, हर फासला तय हो जायेगा 

मैं आईना बनकर जब भी खड़ा होता हूँ
अक्श अपना देख बुत सी बन जाती हो

खता मेरी या नसीब तेरा तू ही जाने जानां
मैं खुदा तो नहीं सवाल दर सवाल कैसे करूँ


चलो तुम चार कदम फासला तय करने मंजिल
कारवां बन जायेगा गर पाक इरादे हों दिल में

चुनी खुद राह अपनी फिर नीची नज़रें क्यूँ हैं?
शर्मिन्दगी फैसले पर या जहां को जान लिया?

जब मन खाली है तितली बन जाती हो
जब मन भारी है सागर सी बन जाती हो

कैसे बतलायें किसको समझाये हर पल
चंचल ये मन क्यूं बन जाता सवाली है


ज़िन्दगी हसीन ही होती है जीने का अंदाज़ जुदा होता है
इश्क, इबादत, सौदा, कुछ भी मैं तो मानूं ये खुदा होता है

२२ मई २०१३
तथागत ब्लॉग के सर्जक
श्री राजेश कुमार सिंह को समर्पित
चित्र गूगल से साभार 

Thursday, 16 May 2013

गोदरिया बाबा / भरथरी

हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव 
नरियरा मुख्यमंत्री चिन्हित मार्ग पर स्थित गाँव अपने धर्म निर्वहन और राधावल्लभ
मंदिर संग दीवालों पर अंकित दुर्लभ चित्रकारी के लिए बीस कोस तक जाना जाता है।
यह मंदिर नाटक, लीला और रथयात्रा के लिये आज भी बड़ी श्रद्धा से स्मरण किया जाता
है दशहरा और रथयात्रा की परम्परा जीवंत है  एक समय इस मंदिर के सामने रायगढ़
नरेश राजा चक्रधर सिंह जी के राज नर्तक कार्तिक राम, उसके पुत्र रामलाल, पद्म श्री
कल्याण दास जी, और वेद मणि सिंह पखावज,तबला वादक भान सिंह, मेरे चाचा
श्री बीर सिंह, इसराज वादकसुख सागर सिंह, हारमोनियम पर नंदेली के पंचकौड़
प्रसाद जी, दद्दू खां जी, सुलक्षणा पंडित, श्यामशरण सिंह, श्री विशेश्वर सिंह जी
ने अपनी कला से दर्शकों को मंत्र मुग्ध किया।

ये एक संजोग और मेरा सौभाग्य है  कि दादा श्री भान सिंह के सानिध्य में  इन्हें सुनने
और इनकी कला वादन, गायन, नृत्य प्रदर्शन के दौरान संग रहने का सौभाग्य मिल गया।

मंदिर में संत, फ़क़ीर, और बाबा को आश्रय मिला ही गोदरिया बाबा जो भरथरी
चरित गायक ने भी अपना डेरा आज तक बनाया है लगभग १९६८ में कक्षा ८ वीं
की परीक्षा के दौरान अपनी छोटी बुआ करुणा दीदी के घर रुका था यह भी संजोग
कि आप श्री विसेश्वर सिंह की बहु हैं और घर मंदिर के सामने तब के भरथरी के
गाये गीत जेहन में आज भी कानों में गूंज रहे हैं

कल भी इनका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया था आज जिज्ञासावश आपसे बांटता हूँ

*
चाहे भाई कितना बैरी हो
उससे कुछ भी छुपाना नहीं चाहिये
**
चाहे पत्नी कितनी प्यारी हो
उससे सब कुछ बतलाना नहीं चाहिये
***
चाहे बेटी कितना प्यारी हो
उससे हर घर घुमाना नहीं चाहिये
****
चाहे बेटा कितना दुलारा हो
उससे सिर पर चढ़ाना नहीं चाहिये

ये गोदरिया बाबा बड़े निर्विकार भाव से भरथरी चरित के साथ इन गीतों को बड़े आनद से गुनगुनाते गाते है किन्तु जितना कह देना आसान है इन्हें इनके मूल बोल के साथ सुन पाना आसान नहीं।

आज इन कला मर्मज्ञों में श्री वेदमणि जी रायगढ़, श्री रामलाल जी रायगढ़, सुलक्षणा पंडित मुंबई ही वसुधा पर हैं शेष को मेरा सादर प्रणाम सहित नरियरा के बुजुर्गों को नमन जिन्होंने मंदिर बनवाया।

प्रार्थना रात को  आज भी मंदिर में गूंजती है
*****श्री रामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणं*****

१६ मई २०१३
चित्र गूगल से साभार
समर्पित स्व. शशि भूषण भाई को जिनकी कमी खलती है। 

Tuesday, 7 May 2013

आसां है?

आसां है दर्द में हंसना और ख़ुशी में आँखे छलकाना? 

*
बहुत आसां है?
दर्द में रोना
और
ख़ुशी में हंसना?
लेकिन
तुम्हारी आँखों से
मैंने भी सीख लिया
दर्द में हंसना
और
ख़ुशी में रोना

**
दर्द को सहेजना
दिल की गहराई में
बाँट लेना दर्द भी
ख़ुशी के पलों में
पलकों को बिन भिगोये
ये फन भी सिखला दिया
राह चलते चलते
एक दिन यूँ ही
***
मैं तो जानता ही नहीं
दर्द में हंसना और हँसाना
छलक जाते हैं आंसू
गम में
तुम्हारी भीगी आँखों में
झांकता हूँ जब

कभी कभी आँखे तेरी
धोखा दे जाती हैं

०७ मई २०१३