* पत्थरों के शहर में ही कांच के मिलते हैं कद्रदां वरना पारस भी पत्थरों को कनक बनाता जाता ** पत्थर दिल इंसान ही करता है प्यार बेइंतहा सबसे पत्थरो से सदा प्रेम का दरिया बहता देखा है हमने *** चोट से नरम पानी के पत्थर टूट जाता है पत्थरों के बीच पत्थर चोट कहां पाता है **** पत्थरों के शहर में पत्थर दिल इंसान मोम का देखा अश्क आंखों में, अंगार जेहन में, दर्द इंसान का देखा ***** पत्थरों से बनाये बुत को हर पल पूजता इंसान है कम ही इंसान इंसान को पूजते हैं फ़ना होने पर चित्र गूगल से साभार |
Thursday, 28 March 2013
पत्थर
Friday, 1 March 2013
शालीनता
शालीनता अकलतरा में
बचपन में अकलतरा अपने सौहाद्रता, सौजन्यता, प्रेम, सेवा, त्याग, सदभावना,
मिलनसारिता, अनेकता में एकता, और सबसे ऊपर अपने विनम्रता के लिए
जाना जाता था। शांत, सौम्य वातावरण में लोगो का मेल मिलाप सभी त्यौहारों में
दशहरा, दीपावली, भोजली, दुर्गा उत्सव,की बात अलग हैं, अकाल में कुएं से पानी
निकालते समय भी बाटते देखा प्रेम को खुले हाथों निर्विकार।
यह क़स्बा बाम्बे हावड़ा मुख्य रेल लाइन पर बिलासपुर से २८ कि.मी.दूर स्थित।
*****कल*****
बखरी गए थे क्या चन्दा के लिए?
पूछते थे नगर सेठ मुस्कुराकर
एक रूपया कम लिखना
महाराज के चंदे से
*****आज *****
१*
कल तक ऐतबार था जिन दोस्तों पर
अज़ीज़ थे
मैं भी था महफिलों में
आज मुंह फेर लिया मेरी लाचारी पे
लगते है अजीब
निकल जाते हैं सामने से
मुस्कुराकर
कोई शिकवा नहीं न गिला
न कोई तकलीफ
अब मैं उन्हें जान गया।
२**
लगता है सांस थम जायेगी
थाम लेता हूँ दम
कल तक दस्तक देता था
पत्नि और भाई के लिये
आज
ऐतबार हो गया खुद पे
खुदा से ज्यादा
मैं जानता हूँ
लोग आयेंगे
मुझसे मिलने
तब मैं मुंह फेर लूँगा
०२. ०३. २०१३
मित्र अनिल जैन को समर्पित
चित्र गूगल से साभार
[ बखरी अर्थात श्री राहुल कुमार सिंह जी *सिंहावलोकन * का घर ]
[ महाराज अर्थात श्री राजेंद्र कुमार सिंह जी या श्री सत्येन्द्र कुमार सिंह जी ]
बचपन में अकलतरा अपने सौहाद्रता, सौजन्यता, प्रेम, सेवा, त्याग, सदभावना,
मिलनसारिता, अनेकता में एकता, और सबसे ऊपर अपने विनम्रता के लिए
जाना जाता था। शांत, सौम्य वातावरण में लोगो का मेल मिलाप सभी त्यौहारों में
दशहरा, दीपावली, भोजली, दुर्गा उत्सव,की बात अलग हैं, अकाल में कुएं से पानी
निकालते समय भी बाटते देखा प्रेम को खुले हाथों निर्विकार।
यह क़स्बा बाम्बे हावड़ा मुख्य रेल लाइन पर बिलासपुर से २८ कि.मी.दूर स्थित।
*****कल*****
बखरी गए थे क्या चन्दा के लिए?
पूछते थे नगर सेठ मुस्कुराकर
एक रूपया कम लिखना
महाराज के चंदे से
*****आज *****
१*
कल तक ऐतबार था जिन दोस्तों पर
अज़ीज़ थे
मैं भी था महफिलों में
आज मुंह फेर लिया मेरी लाचारी पे
लगते है अजीब
निकल जाते हैं सामने से
मुस्कुराकर
कोई शिकवा नहीं न गिला
न कोई तकलीफ
अब मैं उन्हें जान गया।
२**
लगता है सांस थम जायेगी
थाम लेता हूँ दम
कल तक दस्तक देता था
पत्नि और भाई के लिये
आज
ऐतबार हो गया खुद पे
खुदा से ज्यादा
मैं जानता हूँ
लोग आयेंगे
मुझसे मिलने
तब मैं मुंह फेर लूँगा
०२. ०३. २०१३
मित्र अनिल जैन को समर्पित
चित्र गूगल से साभार
[ बखरी अर्थात श्री राहुल कुमार सिंह जी *सिंहावलोकन * का घर ]
[ महाराज अर्थात श्री राजेंद्र कुमार सिंह जी या श्री सत्येन्द्र कुमार सिंह जी ]
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