Wednesday 4 April 2012

अर्पण



राही नाव चलाये
माझी जावे पार
भक्त अर्पन के लिये
प्रतिमा लाये हार


पानी आग लगाये
ज्योत बुझाये प्यास
गंगा प्यासे से मांगे
गंगाजल की धार


दुश्मन प्रीत बढ़ाये
मीत करे दिल चाक
जीवन मृत्यु से मांगे
पल दो पल का प्यार

25/03/1978
परम मित्र रमाकांत झा जी को समर्पित
चित्र गूगल से साभार

11 comments:

  1. वाह! क्या उलट-बांसियां हैं....

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  3. बंधुवर रमाकांत सिंह जी
    नमस्कार !

    अच्छी रचना है अर्पण , किंतु आशय पूर्णतः समझ नहीं आया …


    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. दुश्मन प्रीत बढ़ाये
    मीत करे दिल चाक
    जीवन मृत्यु से मांगे
    पल दो पल का प्यार
    आज के जीवन के आपाधापी में ऐसा ही कुछ हो रहा है।

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  5. .

    बंधु ! नई रचना की प्रतीक्षा है …

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  6. आशय समझ में नहीं आया मगर पढ़कर अच्छा लगा...
    सुंदर प्रस्तुति ...

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्‍तु .उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..आभार

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  8. प्रिय रमाकांत जी ..अच्छी रचना ,,,आज विरोधाभाषी स्थितियां और ऐसे नज़ारे बहुत दीखते हैं ही ...आशय समझ नहीं आया रमाकांत सिंह जी ने रमाकांत झा को ??
    मेरे ब्लॉग प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच पर आप आये ...आभार और स्वागत है ....
    मुमताज की भूमिका स्कूल में जरुर ...
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  9. बेहतरीन प्रस्तुति !

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  10. मस्त हे, बरसे कम्बल भीगे पानी

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