एक बार नारद जी शुश्रुत जी के पास गए
शुश्रुत जी रुग्ण लोगों को औषधि दे रहे थे
नारद जी ने कहा वैद्य जी मेरे पास एक सूची है
सूची में वो हैं जो ईश्वर को याद करते हैं
आप भी अपना नाम सूची में देख लें
आप भी अपना नाम सूची में देख लें
नारद जी के आग्रह पर खंगाल डाली सूची
आदि से अंत तक हर सफा भरा था भक्तों से
शुश्रुत ने नहीं पाया तो अपना नाम कहीं
परोपकार में पेड़ फल दें नदियाँ बहें निरंतर क्यों
गाय दूध देती हैं शरीर भी परोपकार में
परोपकार में ही बीतता गया हर पल यूँ ही
एक बार फिर पहुच गए नारद जी शुश्रुत के पास
जैसे ही नारद जी पहुंचे शुश्रुत जी के पास सूची ले
इस बार उन्होंने कहा प्रभु क्षमा करें,औषधि-वितरण में
नारद जी ने मध्य में ही कहा आदरणीय इस बार
नई सूची का अवलोकन करें थोड़ा धीरज धरें
क्यों नाहक आप समय और औषधि को नष्ट करते हैं
हरने दें पीड़ा आप व्यर्थ न गवाएं अमूल्य समय
हर पन्ना शुरू से अंत तक भरा था भक्तों से
बस नहीं मिल पाया पहले पन्ने के बाद अंत तक
खिन्न मन से शुश्रुत जी ने नारद जी को लौटा दी सूची
इस बार इनका आग्रह रहा भविष्य में न करें ऐसा
बड़ी पीड़ा होती है लगता है पूरा जीवन व्यर्थ चला गया
बस मगन हूँ अपने धुन में बांटते-खोजते औषधि
शुश्रुत जी आपने एक सामने का पन्ना छोड़ दिया देखना
नारद जी के अनुरोध पर देखा और आश्चर्य से भर गये
पहले पन्ने पर पहला नाम वैद्य शुश्रुत जी अंकित देख
न हों चकित, न संशय, न शोक, न आकुलता
ये क्यों?
पहली सूची थी भक्तों की जो याद करते हैं प्रभु को
दूसरी सूची रही भगवान की जो भक्तों को याद करते हैं
*महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप किसे याद करते हैं*
**महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपको कौन याद कर जाता है**
***ये रचना उसे समर्पित जो मुझे याद करता/करती है ***
****पिता श्री जीत सिंह से सुनी कहानी का लेखन****
13अगस्त 1994 रात्रि 8.45 दिन शनिवार
पिताजी का अवसान 14 अगस्त 1.28 दोपहर दिन रविवार
चित्र गूगल से साभार
शुश्रुत ने नहीं पाया तो अपना नाम कहीं
परोपकार में पेड़ फल दें नदियाँ बहें निरंतर क्यों
गाय दूध देती हैं शरीर भी परोपकार में
परोपकार में ही बीतता गया हर पल यूँ ही
एक बार फिर पहुच गए नारद जी शुश्रुत के पास
जैसे ही नारद जी पहुंचे शुश्रुत जी के पास सूची ले
इस बार उन्होंने कहा प्रभु क्षमा करें,औषधि-वितरण में
नारद जी ने मध्य में ही कहा आदरणीय इस बार
नई सूची का अवलोकन करें थोड़ा धीरज धरें
क्यों नाहक आप समय और औषधि को नष्ट करते हैं
हरने दें पीड़ा आप व्यर्थ न गवाएं अमूल्य समय
हर पन्ना शुरू से अंत तक भरा था भक्तों से
बस नहीं मिल पाया पहले पन्ने के बाद अंत तक
खिन्न मन से शुश्रुत जी ने नारद जी को लौटा दी सूची
इस बार इनका आग्रह रहा भविष्य में न करें ऐसा
बड़ी पीड़ा होती है लगता है पूरा जीवन व्यर्थ चला गया
बस मगन हूँ अपने धुन में बांटते-खोजते औषधि
शुश्रुत जी आपने एक सामने का पन्ना छोड़ दिया देखना
नारद जी के अनुरोध पर देखा और आश्चर्य से भर गये
पहले पन्ने पर पहला नाम वैद्य शुश्रुत जी अंकित देख
न हों चकित, न संशय, न शोक, न आकुलता
ये क्यों?
पहली सूची थी भक्तों की जो याद करते हैं प्रभु को
दूसरी सूची रही भगवान की जो भक्तों को याद करते हैं
*महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप किसे याद करते हैं*
**महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपको कौन याद कर जाता है**
***ये रचना उसे समर्पित जो मुझे याद करता/करती है ***
****पिता श्री जीत सिंह से सुनी कहानी का लेखन****
13अगस्त 1994 रात्रि 8.45 दिन शनिवार
पिताजी का अवसान 14 अगस्त 1.28 दोपहर दिन रविवार
चित्र गूगल से साभार