Saturday, 3 November 2012

प्रेम



एक बार नारद जी शुश्रुत जी के पास गए
शुश्रुत जी रुग्ण लोगों को औषधि दे रहे थे
नारद जी ने कहा वैद्य जी मेरे पास एक सूची है
सूची में वो हैं जो ईश्वर को याद करते हैं

आप भी अपना नाम सूची में देख लें
नारद जी के आग्रह पर खंगाल डाली सूची
आदि से अंत तक हर सफा भरा था भक्तों से
शुश्रुत ने नहीं पाया तो अपना नाम कहीं

परोपकार में पेड़ फल दें नदियाँ बहें निरंतर क्यों
गाय दूध देती हैं शरीर भी परोपकार में
परोपकार में ही बीतता गया हर पल यूँ ही
एक बार फिर पहुच गए नारद जी शुश्रुत के पास

जैसे ही नारद जी पहुंचे शुश्रुत जी के पास सूची ले
इस बार उन्होंने कहा प्रभु क्षमा करें,औषधि-वितरण में
नारद जी ने मध्य में ही कहा आदरणीय इस बार
नई सूची का अवलोकन करें थोड़ा धीरज धरें

क्यों नाहक आप समय और औषधि को नष्ट करते हैं
हरने दें पीड़ा आप व्यर्थ न गवाएं अमूल्य समय
हर पन्ना शुरू से अंत तक भरा था भक्तों से
बस नहीं मिल पाया पहले पन्ने के बाद अंत तक

खिन्न मन से शुश्रुत जी ने नारद जी को लौटा दी सूची
इस बार इनका आग्रह रहा भविष्य में न करें ऐसा
बड़ी पीड़ा होती है लगता है पूरा जीवन व्यर्थ चला गया
बस मगन हूँ अपने धुन में बांटते-खोजते औषधि

शुश्रुत जी आपने एक सामने का पन्ना छोड़ दिया देखना
नारद जी के अनुरोध पर देखा और आश्चर्य से भर गये
पहले पन्ने पर पहला नाम वैद्य शुश्रुत जी अंकित देख
न हों चकित, न संशय, न शोक, न आकुलता

ये क्यों?

पहली सूची थी भक्तों की जो याद करते हैं प्रभु को
दूसरी सूची रही भगवान की जो भक्तों को याद करते हैं
*महत्वपूर्ण यह नहीं कि  आप किसे याद करते हैं*
**महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपको कौन याद कर जाता है**

***ये रचना उसे समर्पित जो मुझे याद करता/करती है ***

****पिता श्री जीत सिंह से सुनी कहानी का लेखन****
13अगस्त 1994 रात्रि 8.45 दिन शनिवार
पिताजी का अवसान 14 अगस्त 1.28 दोपहर दिन रविवार

चित्र गूगल से साभार