विज्ञान प्रदर्शनी कोरबा में कलगामार पूर्व माध्यमिक शाला करतला जिला कोरबा द्वारा सम्मिलित मॉडल अपने अधोलिखित उद्देश्यों सहित |
आभा - THE SPLENDOR
Tuesday, 4 March 2014
*सूर्य ऊर्जा का दोहन
Friday, 29 November 2013
मुलमुला त्रिमूर्ति चौक
बिलासपुर शिवरीनारायण राष्ट्रीय राज मार्ग पर बिलासपुर से २८ कि मी दूर
स्थित मुलमुला मुख्य मंत्री चिन्हित मार्ग से वर्धा पावर प्लांट से भी जुड़ता है
मेरा गांव मुलमुला जल संरक्षण और जल संवर्धन में अग्रगण्य
अपनी बसाहट, आबादी, रकबा, कला प्रेम, ग्राम्य देवता कि पूजा
फसलों कि विविधता धान, गेहूं, अरहर, मसूर, मूंग, उड़द, गन्ना
६०० एकड़ गोचर जमीन और लगभग ४० एकड़ का बंधवा तालाब
क्षत्रियों के बीच एक कहावत प्रचलित है
भैरो, भोला, भूसाऊ, भान एकर मरम ल नई जानय भगवान
आदरणीय भैरो सिंह नरियरा, भोला सिंह कोसा रिस्दा,
भुसाऊ सिंह जी कोनार, और भान सिंह जी तबला वादक
ये चारों व्यक्ति अपने अद्भुत गुणों के कारण समाज में विख्यात रहे
श्री भान सिंह और श्री सुखसागर सिंह क्रमशः तबला और इसराज में
अनोखे कलाकार रहे जिनकी जन्मभूमि मुलमुला है इनके मित्र
बाजामास्टर श्री पचकौड़ प्रसाद नंदेली ने मित्रता और संगत निभाई
आज मुलमुला चौक को त्रिमूर्ति चौक के नाम से जाना जाता है
जहाँ इन तीनों मूर्धन्य कलाकारों की मूर्ति स्थापित की गई है
कभी इस चौक का नाम मैं और ब्रम्हेश्वर भाई ने मस्ताना चौक रखा था
तालाबों की कड़ी में २६ तालाब
सिरी बंद, गलबल बंद लिमाही , सुआ तालाब, तेली तालाब
राम बांधा, मुंदी डबरी, उछना, केसरताल, फूल सागर, छिरही
डूमरइहा, बईगिनडबरी, थुहा, माधो सागर, भोला तालाब,
टारबांध बंशी डबरी, नवा तालाब शबरिया डेरा, बंधाई,
नवा तालाब, कपूर ताल, डबरी, छपरहि, गतवा और बंधवा
मुहल्ला या पारा १९
गुडी पारा / गौटिया पारा / बखरी, सतनामी पारा, पटेलपारा,
केंवट पारा, बावा पारा, भैना पारा, घसिया पारा, पनिका पारा,
तेली पारा, ढीमर पारा, गोंड़ पारा, कुर्मी पारा, बगीचा पारा,
राऊत पारा, फ़ोकट पारा, स्कूल पारा, पइकहा पारा, शबरिया पारा,
आबादी लगभग ४५००, रकबा २१०० एकड़ दो फसली जमीन
सभी जाति के लोग अपनी रीत रिवाज, परम्परा, धर्म निर्वहन के साथ
अपने समुदाय में अलग बसाहट में रहते हैं किन्तु प्रवास के कारण लोग
बगीचा पारा और फ़ोकट पारा में शामिलात बस गए हैं
२९ नवम्बर २०१३
समर्पित मेरे पूर्वजों को
Monday, 26 August 2013
हलषष्ठी
चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर |
हलषष्ठी का व्रत माँ बेटा के अटूट रिश्ते की अनोखी कहानी
हर वर्ष पुत्र की मंगलकामना के लिये माँ व्रत को उपवास सहित मनाती है
छत्तीसगढ़ में इसे खम्हर छठ के नाम से जाना और मनाया जाता है
एक पुरानी कथा अनुसार एक महिला निःसंतान थी उसने भगवान से संतान माँगा
ईश्वर ने कहा विधान अनुसार यह सम्भव नहीं किन्तु अनुनय विनय पर शर्त रखी
संतानवती हो सकती हो किन्तु पुत्र चंचल होगा यदि घर में नहीं रुकता है तो कोई?
मा ने कहा वो मुझ पर छोड़िये मैं मना लूंगी आप संतान दीजिये बाकी मुझ पर.….
कालान्तर में महिला को वरदानी पुत्र की प्राप्ति हुई किन्तु महान जिद्दी, कठिन हठी
कभी भी, कुछ भी, कहीं भी, किसी वक़्त, मांगता और शर्त पूरा करो नहीं तो सोच लो?
चला जाऊँगा अभी के अभी घर छोड़कर
माँ का दिल भी वसुधा की तरह फैला और समुद्र की तरह रत्न गर्भा मांगो कभी भी
कल्प वृक्ष की तरह पूर्ण किया हर वक़्त बिन कन्झाये किन्तु विधी का विधान
पुत्र के मृत्यु लोक त्यागने का समय आ गया अब शुरू हो गई परीक्षा की कसौटी
चाहे अनचाहे , जाने अनजाने चीजों की मांग शुरू, किन्तु कोई कमी न रही......
आया भादों माह का कृष्ण पक्ष, षष्ठी माँ ने व्रत रखा पुत्र के दीर्घ जीवन की कामना हेतु
आज बालक ने भी मन में जाने की जिद कर रखी थी बस फिर क्या था व्रत और जिद का क्रम
बालक पहले भी जिद कर चुका था, सावन के महीने में धूल से खेलने की
माँ जानती थी सो सहेज रखा था धूल मिट्टी के घड़े में जतन कर हुई पुरी
एक बार क्वार के माह में कीचड़ भी माँगा माँ ने घोल रखा था गाय के नाद में
जिद की थी रात में कंचे खेलूँगा, तो गोधुली बेला में लकड़ी का भौंरा खेलने की
भर दोपहरी अगहन के माह में खाना है महुवे की रोटी बबूल के गोंद संग
कुछ ऐसे ही जिद की पूर्ति और उपवास में बना था फलाहार लेकिन जाने की जिद
फलाहार क्या परीक्षा की पोटली
*पसहर का चावल [ बिना हल चलाये जगह का अन्न ]
*धन मिर्ची [ उल्टा फलनेवाली मिर्च ]
*मुनगा की भाजी धन मिर्ची की छौंक लगी
*बेर्रा भाजी [ १२ भाजियों का मिश्रण ]
*भैंस की दही
*भैंस का ही दूध
*भैंस का ही घी
आज जिद ठन गई थी खेलने जाना है और वापस नहीं आना है बस
माँ बार बार मना रही थी लेकिन बालक हठी विधि के विधान की पूर्ति में अड़ा
घर की शुद्धि हेतु माँ छुही से लीप रही थी बालक ने हठ में जैसे ही जाने को कदम बढ़ाया
माँ ने गुस्से से बेटे के पीठ पर घप्प से पोतनी सहित हाथ की मुहर लगा दी
बस क्या था टल गया विधि का विधान
तब से जिद्दी बच्चों के लिये बना है कहावत हाय रे खम्हर छठ के लइका
२६ अगस्त २०१३
हल षष्ठी के अवसर पर रूठे जाने की जिद पर अड़े
समस्त माँ बेटों को प्रणाम सहित समर्पित
[ कथा है कोई अंश नीचे ऊपर होगा या छुट गया ]
गृह प्रवेश पर आज भी हाथ का निशान * हाथा * लगाया जाता है
जो द्योतक है कि यह मेरा है
चित्र गूगल से साभार
Thursday, 22 August 2013
विक्रम वेताल
राजन
आज पूरा देश खामोश क्यों है?
दफा भी शून्य में कायम
क्यों नहीं जला रहे हैं कैंडल
इंडिया गेट पर?
रात लोगों को नींद आ रही है?
पुलिस साक्ष्य तलाश रही है?
थोड़ा समय दो
जोड़ घटाव का
लोगो का भ्रम टूटने से
राजनैतिक संकट उत्पन्न होगा
चुनाव सामने है
बहन जी कहती हैं
वो हर पल साथ थी
तब भी ........
संदेह क्यों?
संत कभी दोषी नहीं होते?
बड़ी दुकानदारी है?
छोटे लेन देन का हिसाब
मुंशी से सलटा लो?
लड़की नाबालिग है?
कुछ भी बोल सकती है?
किसने बुलाया था आश्रम?
आश्रम में कौन था?
कौन सिद्ध करेगा?
यह सत्यवादी का कर्म स्थल है?
नाबालिगों की
हत्या, अनाचार
कदापि न ही?
राजन
आज लोकतंत्र की हत्या होगी?
धर्म की आड़ में बच जायेगा पाखण्डी?
धरा रह जायेगा न्याय
ये दामिनी कहाँ
न आरोपी बस कंडक्टर
साक्ष्य मिटने दो
नये साक्ष्य गढ़ने दो
फिर बैठायेंगे आयोग
आज तेवर बदल गये हैं?
समाज और मेरे भी?
जानते नहीं वो कौन है?
और कितने लोगों का प्रश्रय प्राप्त है?
मुह संभाल कर
22 अगस्त 2013
समर्पित उस जनमानस को
जो कायर की भांति भीड़ का हिस्सा बनते है
सत्य के समर्थक नहीं।
Friday, 2 August 2013
दे सदा
चाहा जिसे बेइंतहा फिर सिर उठाया दीदार को बड़े नाज़ से
नज़रों से ओझल क्यूं दर्द दे मेरे संग, होता ही अक्सर ऐसा है
*****
चलते हैं संग ज्यों ये ज़िन्दगी भर बनकर नदी के पाट की तरह
मिलना कहां चलते भले यूं युग युगों से, होता ही अक्सर ऐसा है
*****
न मौका न कोई दस्तूर देख लगा आवाज़ मैं हर पल साथ हूँ तेरे
मैं जिया तेरे संग, तेरे लिये मिट जाना, होता ही अक्सर ऐसा है
*****
मैं तो बंजारा हूँ लिया है हर जनम तेरी ही खातिर,तेरी बंदगी के लिये
कभी अफसोस नहीं तेरी ख़याल में,ये साँसे भी तोड़ दूं ज़िन्दगी के लिये
*****
किसी के प्यार में इतने मसरूफ नहीं कि भूल जाओ हमें उसकी याद में ऐसे
न ही इश्क में हमने इतना मगरूर बना दिया कि यूं याद कभी तड़पाये नहीं
*****
दे सदा मैं कभी भी चला आऊंगा, तेरी आहट पर भी बिन बुलाये चला आऊंगा
पर ज़रा सोच जो चला गया कभी, आना भी चाहूँ कभी तेरे पास न आ पाऊंगा
चित्र गूगल से साभार
२० जून २०१३
Monday, 8 July 2013
जन्मदिन / तथागत
चित्र साभार श्री राहुल कुमार सिंह जी |
प्रिय बाबू साहब 2 दिन देर से ही सही आपके जन्मदिन पर कुछ पंक्तियाँ मेरी ओर से स्वीकार करें
तथागत
आरम्भ से अंत तक
सब कुछ अनिश्चित,अनित्य
और
नश्वर
इस यात्रा के बीच
कभी बसंत कभी सावन,
कभी मनभावन
कभी जलप्लावन
क्या खोया,क्या पाया
किसने कितना निभाया
आज तक कौन जान पाया
पीछे मुड़ कर देखें
कुछ स्मृतियाँ
कुछ चेहरे
हलके गहरे
डूबते उतारते
समुद्र की लहरों से
पास आते है
थमने के पहले
न जाने
कहाँ
गुम हो जाते हैं
जन्म दिन 06 जुलाई
तथागत ब्लॉग के सृजन कर्ता मेरे बाल सखा और मार्गदर्शक
श्री राजेश कुमार सिंह का स्नेह आपके समक्ष जो दिनांक
8 जुलाई 2013 को टिप्पणी में मिली का प्रकाशन
Friday, 28 June 2013
फ़्राईड आम का अचार
आम का अचार बनायें स्वादिष्ट और टिकाऊ लम्बे समय के लिये बिना रसायन के प्रयोग किये
ये रेसिपी मेरी नानी तिरजुगी देवी और माता जी कुमारी देवी की देन है
१ आम का अचार बनाने के लिये सर्वप्रथम गूदेदार चेरदार अच्छी किस्म का आम लें
२ आम को साइज़ के हिसाब से आठ टुकड़ों में काट लें
३ आम के टुकड़े यथा सम्भव एक इंच स्क्वेयर के हों
४ आम के टुकड़ों को साफ़ पानी से धो डालें ताकि कचरा न रहे
५ आम के टुकड़ों को जालीदार बर्तन में डालकर धूप में सुखा लें
६ अब सरसों के तेल में आम के टुकड़ों को डीप फ्राई कर लें
अब बारी आती है मसाले की
यह एक मसाला का अनुपात बनायें जिसे मिलायें
१ एक किलो धुला हुआ सरसों को ग्राइंडर द्वारा सामान्य ढंग से पिस लें
२ 100 ग्राम इलायचा और लौंग लेकर बारीक पिस लें
३ 100ग्राम खड़ी सौफ लें
४ 150ग्राम साफ़ धुला हुआ करायर लेकर बारीक पीस लें
५ 100ग्रामपीसी हुई हल्दी लें
६100ग्राम पीसी हुई मिर्च ले
७ 1000ग्रामअच्छे किस्म का नमक लें
८ 250 ग्राम छिला हुआ लहसुन लें
**अब आप डीप फ़्राईड आम में पर्याप्त मात्रा में स्वाद अनुसार मसाला मिला दें
**अंत में अचार में इतना शुद्ध सरसों का तेल डालें कि अचार डूब जाये
1 आम का अचार बनाते समय पवित्रता का ध्यान रखें
2 स्नान आदि दैनिक क्रियाओं से निवृति का विशेष ध्यान रखें
3 अपवित्र बर्तन का प्रयोग न करें
4 नया अचार धुले हुए बर्तन में ही रखें
5 सिरेमिक या कांच का बर्तन सबसे उपयुक्त होता है
*विशेषता यह है कि आम का अचार मसाला मिलाकर तुरंत खा सकते हैं
*यह विधि महँगी किन्तु अचार को एक वर्ष तक सुरक्षित रख सकते हैं
*इस विधि में किसी भी रसायन का उपयोग नहींकिया गया है
***** आप पसंद करें तो कटहल को भी आम के टुकड़ों की साइज़ में काटकर उसे भी
डीप फ्राई करके आम के अचार में मिला दें बन गया कटहल और आम का मिक्स अचार
28 जून 2013
समर्पित महिला जगत को जिन्हें गृह लक्ष्मी का सम्मान प्राप्त है
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